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शुक्रवार, 15 मई 2015

पेड़ की छाँव तले खेल का अनोखा स्कूल

पेड़ की छांव तले शिक्षिका स्नेहा का अनोखा स्कूल
रमेश शर्मा/पत्थलगांव/
       गर्मी की छुटिटयाँ शुरू होते ही शहरी क्षेत्र के बच्चे भले ही अभिनय, नृत्य, ध्यान और व्यक्तित्व विकास की कक्षाओं में शामिल हो गए हैं, लेकिन ग्रामीण अंचल के बच्चों के सामने इस तरह की सुविधाओं का सर्वथा अभाव रहता है। गांव के बच्चों को ग्रीष्मकालीन छुटिटयों में चिलचिलाती धूप में इधर उधर घूमना तथा मवेशियों के साथ उठा पटक करते देख कर तिलडेगा माध्यमिक स्कूल में पदस्थ शिक्षिका श्रीमती स्नेहा श्रीवास्तव ने पेड़ की छांव तले प्रति दिन 2 घंटे तक खेल और पढ़ाई का अनोखा स्कूल चलाया जा रहा है।
     ग्रीष्मकालीन छुटिटयों के इस स्कूल में गांव के बच्चों को कभी 2 घंटे तो कभी 1 घंटे में ही छुट्टीे दी जाती है। ग्रामीण बच्चों को खेल खेल में रंगोली, बागवानी, वाद विवाद, नृत्य व गीत सिखाया जा रहा है। गांव के बच्चों को खेलकूद के साथ अन्य मनोरंजक कार्यक्रम काफी रूचिकर लगने लगे हैं। पेड़ की छांव तले स्कूली बच्चों की भीड़ के साथ अन्य ग्रामीण भी उपस्थित रहते हैं। ग्रामीण बच्चों को लुका छिपी के खेल तथा नाच गाने के साथ विज्ञान और अंग्रेजी विषय की पढ़ाई भी खूब रास आ रही है।
खेल खेल में ज्ञान की बातें भी
        पेड़ की छांव तले ग्रामीण बच्चों का अनोखा स्कूल चलाने वाली शिक्षिका स्नेहा ने बताया कि यहां गर्मी की छुटिटयंा होते ही ज्यादातर बच्चें मवेशी चराने और पेड़ पर चढ़कर धमाचौकड़ी जैसे अनुपयोगी काम में व्यस्त हो जाते थे। तेज गर्मी का मौसम के दौरान धूप में बाहर खेलने से कई बच्चे बुखार तथा अन्य बीमारियों की चपेट में आ जाते थे। ग्रामीण बच्चों के लिए ग्रीष्मकालीन छुटिटयों में मनोरजन कम और परेशानी अधिक मिलने की बात पर शिक्षिका स्नेहा काफी व्यथित हुई थी। उन्होंने बताया कि इन्ही बातों को देख कर उसके मन में खेल कूद का अनोखा स्कूल शुरू करने का विचार आया था। इसके तहत गांव के इन बच्चों को एकत्रित कर जब उन्हे खेल खेल में पढ़ाने का काम शुरू किया तो सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। तिलडेगा गांव में अब गांव के अनेक बच्चे यहाँ पहुंच कर अपना कला कौशल निखारने में जुट गए हैं। इन छोटे बच्चों के खेल कूद के इन कार्यक्रमों में कई बार बच्चों के अभिभावक भी उपस्थित रहते हैं। 
अभिभावक भी चिंतामुक्त
पहले चिलचिलाती धूप में मवेशियों पर बैठकर होती थी धमाचौकड़ी
राडोल के उपसरपंच मनोज अम्बस्थ ने बताया कि इस अंचल में ग्रीष्मकालीन छुटिटयां शुरू होते ही आस पास गांवों के ज्यादातर बच्चे मवेशियों के बीच रह कर खेल कूद में व्यस्त हो जाते थे।मवेशियों पर बैठ कर तालाब और नदी नालों में चले जाने से इन बच्चों के अभिभावक भी चिंतित रहते थे। श्री अम्बस्थ ने बताया कि अब चिलचिलाती धूप में इधर उधर घूमने के बजाए इन बच्चों को मनोरजंन के खेल कूद के साथ पेड़ की छांव तले पढ़ाने का काम गांव के बुजुर्गो को भी पसंद आ रहा है।

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