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गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

विलुप्ति के कगार पर कार्तिक स्नान की परम्परा



शहर के मध्य में स्थित गंदगी से पटा सुता तालाब
पत्थलगांव/ रमेश शर्मा
         बदलते दौर में युवाओं के साथ बुजुर्गो ने भी भोर के समय कार्तिक स्नान की पुरानी परम्परा को भुला दिया है।
   कस्बे और गांवों में तालाबों का अस्तित्व गुम हो जाने के कारण ज्यादातर लोग चाहते हुए भी इस परम्परा का निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं। यहां की बुजुर्ग महिला राधा बाई पटेल का कहना था कि कार्तिक मास में दिन के पहले पहर में स्नान कर भगवान षिव की पूजा अर्चना का काम को अब भुला दिया गया है। पहले शरद पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक पूरे एक माह तक प्रतिदिन नदी और सरोवर में स्नान कर जल में दीप प्रज्ज्वलित किए जाते थें। आधुनिकता के दौर में वर्षो पुरानी यह परम्परा धीरे धीरे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है।
    कस्बों के साथ गांवों में भी तालाबों का अस्तित्व नहीं बच पाने से वहां के लोग कार्तिक स्नान की धार्मिक परम्परा में रूचि नहीं दिखा रहे हैं। पुराने बुजुर्ग कार्तिक स्नान की परम्परा को आज भी याद तो करते हैं पर आस पास में तालाब और नदी का अभाव के चलते वे केवल याद करके ही रह जाते हैं। यहां के व्यवसायी सुरेश अग्रवाल का कहना था कि पहले कार्तिक का महीना प्रारम्भ होते ही सुबह 4 बजे लोग अपने घर से स्नान के लिए निकल पड़ते थे। उस दौरान ठंडे पानी में स्नान के बाद जल में दीप प्रज्ज्वलित करने का नजारा देखते ही बनता था। भोर के समय कार्तिक स्नान के लिए तालाब में दूर दूर के लोग पहुंचकर दीपदान करके तालाब के आस पास मनोरम दृष्य बन जाता था।
             स्वस्थ जीवन की अच्छी परम्परा       
     यहां के नवीन होत्ता ने बताया कि आधुनिकता के चलते अब पुरानी परंपरा को विलुप्त कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि कार्तिक स्नान की परम्परा के पीछे धार्मिक कारण से अधिक अच्छे स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आदत बनती थी।श्री होत्ता ने कहा कि गुलाबी ठंड में प्रातः का स्नान स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बेहतर रहता था। तालाब अथवा नदी में दीप प्रज्ज्वलित करने के बाद चावल आदि से भगवान षिव की पूजा अर्चना करने से आसपास के जीव जन्तुओं को भोजन मिलता था। इससे तालाब का पानी भी स्वच्छ रहता था। भोर में कार्तिक स्नान के बहाने लोगों को जल्दी उठने की आदत बन जाती थी पर अब आधुनिकता ने बुजुर्गो व्दारा दी गई अच्छी परम्पराओं को भुला दिया जा रहा है।उन्होने कहा कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए इन परम्पराओं को जीवित रखना बेहद जरूरी है।

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

कीमती क्वार्ट्ज पत्थर का धड़ल्ले से उत्खनन


कंटगजोर में क्वार्ट्ज पत्थर का अवैध संग्रहण

 बेजा अवैध उत्खनन से खतरे में अस्तित्व
 पत्थलगांव/
          जशपुर जिले की पत्थलगांव तहसील के दर्जन भर गांवों में कीमती क्वार्ट्ज  पत्थर का अवैध उत्खनन के नाम पर जगह जगह प्रकृति का स्वरूप बीगाड़ा जा रहा है।पत्थरों का अवैध उत्खनन पर गांवों में पदस्थ राजस्व अमला की चुप्पी से गांव के आस पास पहाड़ तथा अन्य हरियाली पर खतरा मंडराने लगा है।
     पत्थलगांव विकास खंड में इन दिनों दर्जन भर से अधिक गांवों के आस पास क्वार्ट्ज पत्थर और गिटटी तोड़ने का काम कराया जा रहा है।गांव के आसपास बेजा अवैध उत्खनन से जगह जगह गडडे बन गए हैं। प्रकृति का स्वरूप बदलने से अब लोगों में चिंता व्याप्त होने लगी है।यहांपर कटंगजोर, बनंगांव, पालिडीह, किलकिला, पाकरगांव  तथा अन्य गांवों के आस पास क्वार्ट्ज पत्थर का अवैध उत्खनन का काम जोरों से चल रहा है।
    शासन की अनुमति के बगैर क्वार्ट्ज पत्थर निकाल कर गिटटी तोड़ी जा रही है।क्वार्ट्ज पत्थर के धन्धे में रायल्टी की चोरी करके प्रति दिन लाखों रूपयों के राजस्व की चोरी की जा रही है। बताया जाता है कि यहांपर क्वार्ट्ज पत्थर का अवैध उत्खनन कराने में बड़ा माफिया काम कर रहा है। ट्रेक्टर और अन्य वाहनों से क्वार्ट्ज पत्थर को निकाल कर इसे रायगढ़,चांपा तथा उड़ीसा राज्य के उद्योग धन्धो में आपूर्ति की जा रही हैं।यहांपर पगंषुवा, कंटगजोर गांव के आस पास भी काफी बड़े भू भाग में अवैध क्वार्ट्ज पत्थरों का ढ़ेर लगा हुआ है। इस ढ़ेर से ट्रेक्टर के माध्यम से धड़ल्ले से अवैध परिवहन के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।पत्थलगांव क्षेत्र में क्वार्ट्ज पत्थर उत्खनन के लिए मात्र 2 लीज अधिकृत हैं। पर बगैर स्वीकृति के भी यहा ंजगह जगह क्वार्ट्ज पत्थर का अवैध उत्खनन कराया जा रहा है।गांवों में पदस्थ राजस्व अमला व्दारा क्वार्ट्ज पत्थर का अवैध उत्खनन को अनदेखा कर देने से इस धंधा को करने वाले लोगों के हौंसले बुलंद हो गए हैं।
            क्वार्ट्ज पत्थर भंडारण में शर्तो का उल्लंघन
    पत्थलगांव क्षेत्र में क्वार्ट्ज पत्थर उत्खनन के लिए दो लोगों को लीज दी गई है।वर्तमान में दोनो स्थान पर क्वार्ट्ज उत्खनन का कार्य बन्द है। इसके अलावा पत्थलगांव तहसील अन्तर्गत पगंशुवा और बनगांव में क्वार्ट्ज पत्थर भंडारण करने के लिए दो व्यवसायियों को अनुमति दी गई है।दोनो भंडारण स्थल का निरीक्षण के बाद वहंा शासन की शर्तो का उलंघन की बात सामने आई है।इस वजह दोनो भंडारणकर्ताओं को कारण बताओ नोटिश दिया गया है।नोटिश का जवाब संतोषप्रद नहीं मिलने से दोनो के विरूध्द विधि के अनुसार दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
                  मुनेन्द्र जोशी  जिला खनिज अधिकारी


बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

नक्सली समस्या दूर रखने सुदृढ़ नेतृत्व की जरूरत


गणेश राम भगत के समर्थकों की बगीचा में विशाल रैली
  गणेशराम के समर्थन में विशाल रैली व जनसभा

पार्टी गुटबाजी पर ग्रामीणों का विरोध तेज

  पत्थलगॉंव/

       छत्तीसगढ़ का जशपुर जिले में भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा की टिकट वितरण करने में नेताओं की गुटबाजी को महत्व दे देने से यहाँ की सुदृढ़ता पर अब सवालिया निशान लग गया है।जशपुर जिले के अलावा सरगुजा और रायगढ़ जिले में ग्रामीणों के बीच खासे लोकप्रिय रहने वाले जुझारू आदिवासी नेता गणेश राम भगत को इस बार पार्टी नेताओं की आपसी गुटबाजी के चलते विधानसभा चुनाव में टिकिट से वंचित रख दिया है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह की सरकार में पूर्व अजाक मंत्री गणेश राम भगत को भारतीय जनता पार्टी ने जशपुर विधानसभा से टिकिट नहीं दिए जाने पर यहाँ जशपुर,बगीचा पंड्रापाठ क्षेत्र के हजारों ग्रामीणों ने रैली निकाल कर विरोध का स्वर तेज कर दिया है।

   दूर दराज के गांवों से पैदल चल कर ग्रामीण जिला मुख्यालय पहुंच कर पार्टी के नेताओं के सामने अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं। गणेश राम भगत के समर्थकों का कहना था कि भारतीय जनता पार्टी को अपने नेताओं की गुटबाजी के चलते हजारों लोगों को नक्सली समस्या से सुरक्षित रखने वाले जनप्रतिनिधि को अनदेखा नहीं करना चाहिए। 23 अक्टूबर को गणेश राम भगत के समर्थन में रैली निकालने आए ग्रामीणों ने भाजपा के इस निर्णय को जनभावनाओं से अलग निर्णय करार देते हुए इस पर तत्काल पुनर्विचार करने की मांग की है।

   बगीचा मुख्यालय में दोपहर 1 बजे झमाझम बारिश के बाद भी दूर दराज के गांवों से पैदल चल कर आए हजारों ग्रामीणों ने भारतीय जनता पार्टी के इस निर्णय को अनुचित करार दिया है। बगीचा के बस स्टैण्ड पर एकत्रित इस भीड़ ने विशाल रैली निकाल कर जमकर विरोध प्रदर्षन किया। रैली में नक्सली समस्या से सुरक्षा दो,गणेश राम संघर्ष करो, गणेश राम नामांकन भरो, जैसे जोषीले नारे लगाए जा रहे थे। इस रैली में ग्रामीणों का गुस्सा स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। भाजपा के पूर्व जिला उपाध्यक्ष मुकेश शर्मा तथा बगीचा जनपद के पूर्व अध्यक्ष नेयुराम भगत इस रैली का नेतृत्व कर रहे थे। इस रैली में उपस्थित महिलाओं ने मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह के इस निर्णय को पूरी तरह बेतुका निर्णय करार दिया। बगीचा में हाई स्कूल चौक तक भ्रमण करने के बाद एक जनसभा का भी आयोजन किया गया।

     जनसभा में पूर्व जनपद सदस्य मुलासो बाई ने तीखे तेवर दिखाते हुए गणेश राम भगत को ग्रामीणों का सबसे बड़ा हितैषी बताया। मुलासो बाई का कहना था साल के 365 दिन गरीबों के बीच में रहने वाले इस जनप्रतिनिधि को पार्टी भले अनदेखा कर सकती है पर पूरे अंचल का गरीब तबका उनके साथ में डटा रहेगा। भाजपा के पूर्व मंडल अध्यक्ष केशव यादव का कहना था कि गणेश राम भगत ने प्रदेश का सरहदी जिला में नक्सली तथा अन्य बदमाशों की आवाजाही पर रोक लगाने के लिए इस अचंल के ग्राम वासियों को एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई है। इसी की बदौलत यहाँ व्यावसायी और आम जनता सुकून के साथ रह रही है।

    पूर्व जनपद अध्यक्ष नेयु राम भगत ने कहा कि इस अंचल के लोगों को गुटबाजी में उलझने वाले के बजाए सुदृढ़ नेतृत्व देने वाले गणेश राम भगत की जरूरत है।उन्होने कहा कि इस अचंल के लोग अपनी भलाई बुराई को भलि भांति समझ रहे हैं। पार्टी की अनदेखी के बाद भी वे अपने नेता को अलग थलग नहीं रहने देंगे। जनसभा में सभी ने एक स्वर में गणेश राम भगत को चुनाव में जिताने का संकल्प दोहराया। बगीचा की रैली में सरहदी क्षेत्र के कोने कोने से ग्रामीण स्वतः पहुंचे थे। यहाँ पर दनगरी,रोकड़ापाठ,सुलेशा, महनई आदि बीहड़ अचंल से आने वाले लोगों का कहना था कि इस जिले में नक्सली समस्या को दूर रखना है तो सुदृढ़ नेतृत्व के बगैर यह काम सम्भव नहीं है। दनगरी से यहाँ पहुंचे जुगनु यादव का कहना था कि इस अचंल के लोगों अब थोपा हुआ उम्मीदवार नहीं चाहिए। जुगनू राम का कहना था कि जमीन से जुड़े लोगों के दुख सुख में सदैव शामिल रहने वाले जनप्रतिनिधि को ही वे अपना नेता चुनना पंसद करेंगे।

शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

आलू की फसल ने किसानों को डूबोया

पंड्रापाठ क्षेत्र में आलू की फसल
 खेतों में खराब आलू की फसल से किसान मायूस
  पत्थलगांव/ रमेश शर्मा   

     नियत समय पर आलू की फसल खेतों से बाहर नहीं निकलने के कारण अब किसानों को आधी से भी कम फसल पर ही सन्तोष करना पड़ रहा है। कई किसानों को इस बार खरीफ की आलू फसल ने कर्ज के नीचे डूबा दिया है। पंड्रापाठ क्षेत्र में इस बार खरीफ के मौसम में बारिश के कारण कमजोर आलू फसल के खरीदने में बाहर के व्यवसायी भी कतराने लगे हैं।

    बगीचा तहसील का पंड्रापाठ क्षेत्र में 13 ग्राम पंचायत के दो दर्जन से अधिक गांवों के सैकड़ों किसानों ने खरीफ के मौसम वाली आलू की पैदावार ली है। बारिश की वजह से 60 से 70 दिन के भीतर नीकलने वाली आलू की फसल की 20,25 दिन विलंब से कोड़ाई होने के चलते लगभग 60 प्रतिशत नुकसान की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। खेतों से फसल निकालने में देरी हो जाने की वजह यह फसल खेतों में ही खराब हो गई है।

   इस बार प्राकृतिक विपदा ने यहां के सैकड़ों किसानों को कर्ज में डूबा दिया है। पंड्रापाठ के घोरडेगा गांव में लगभग 55 एकड़ भूमि पर आलू की फसल लेने वाले किसान अषोक यादव ने बताया कि लगातार हो रही बारिश के चलते वे अपने खेतों में तैयार हो चुकी आलू की फसल को समय पर नहीं निकाल पाए ।आलू की फसल को 20 से 25 दिन विलंब के साथ निकालने पर लगभग 60 फीसदी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस किसान ने बताया कि यहां पर खरीफ के मौसम में आलू की फसल 60 से 70 दिन के भीतर तैयार हो जाती है।  इस  फसल को नियत समय पर खेतों से नहीं निकालने पर मिटटी में ही आलू की फसल खराब होने लगती है। अषोक यादव का कहना था कि पिछले पखवाड़े लगातार बारिश होने से वे आलू की फसल को नियत समय पर खेतों से बाहर नहीं निकाल पाए हैं। देरी हो जाने के बाद यह फसल मिटटी की नमी से खेतों में ही गलने लगी है।

पंड्रापाठ क्षेत्र में आलू की फसल 
    पंड्रापाठ क्षेत्र में ही रौनी के किसान गौरी गुप्ता का कहना था कि अधिक बारिश के चलते यहां पर आलू की फसल में पहले फंगस का रोग लग गया था। आलू के पौधों में इस रोग का उपचार करने के नाम पर भारी भरकम खर्च करना पड़ा था। इसके बाद भी आलू का रोग से पौधे का तना में गलन शुरू होकर डंठल भी प्रभावित हुई है। इस किसान का कहना था कि यहंा पर बे मौसम की बरसात ने किसानों की कमर तोड़ दी है। यहंा देवडाड़, मुढ़ी, सुलेषा, महनई, छिछली सहित 13 ग्राम पंचायतों के 30 से अधिक आश्रित गांवों में आलू फसल का अलग ही नजारा दिखाई पड़ रहा था । यहंा पर किसानों के खेतों में आलू की अच्छी पैदावार होने के बाद भी उन्हे इसका लाभ से वंचित रहना पड़ रहा है।

    पिछले कई वर्षो से आलू की पैदावार लेने वाला ग्राम घोरडेगा का किसान अषोक यादव का कहना था कि खाद और बीजों में महंगाई का प्रभाव के चलते इस वर्ष आलू की फसल में प्रति एकड़ की लागत 35 हजार रूपयों से बढ़ कर 60 हजार तक पहुंच गई है, पर मौसम का साथ नहीं मिल पाने से इस वर्ष यहंा आलू की खेती घाटे का धंधा साबित हो रहा है। पंड्रापाठ क्षेत्र में आलू की फसल लेने वाले किसानों का कहना था कि जिन खेतों में 50 बोरी आलू बीज लगाया गया था वहां पर अब मुष्किल से 20 बोरी ही आलू की फसल निकल पा रही है। आलू की पैदावार लेने वाले किसानों की सबसे बड़ी परेषानी यह है कि खेतों से फसल निकालने के लिए उन्हे खुला मौसम की जरूरत पड़ती है। आलू की पैदावार खेतों से निकालने के बाद पानी में भीेंग जाने से यह फसल दो तीन दिन के बाद ही गलने और काली पड़ने लगती है। इस समस्या के चलते बाहर के खरीददार भी यहंा आलू के सौदे करने से कतरा रहे हैं। बगीचा क्षेत्र में इन दिनो सैकड़ो क्विंटल आलू खेतों में रह जाने से यहां करोड़ों रूपयों का नुकसान की बात कही जा रही हैं।

                       आलू पर भारी पड़ी बारिश

 बगीचा के कृषि उद्यान अधीक्षक सीआर चैहान ने बताया कि पिछले दिनों अधिक वर्षा के चलते पंड्रापाठ क्षेत्र में आलू की फसल आद्रगलन रोग की चपेट में आ गई थी। अब बारिश थमने के बाद खेतों से आलू की फसल निकालने में विलम्ब हो गया है। उन्होंने बताया खरीफ मौसम की आलू फसल खेतों से निकालने में थोड़ी देर हो जाने से यह फसल नमी के चलते खेतों में ही खराब होने लगी थी। श्री चैहान ने बताया कि बगीचा क्षेत्र का पठारी इलाका में लगभग 700 हेक्टेयर भूमि पर खरीफ आलू की पैदावार ली जाती है। इस बार आद्रगलन और फसल निकालने में विलम्ब हो जाने से नुकसान की सम्भावना देखी जा रही है।              

               नहीं मिलता मोबाइल पर कृषि मैसेज

 बगीचा क्षेत्र के किसानों का कहना था कि कृषि विभाग का सूचना तंत्र महज दिखावा साबित हुआ है। किसानों व्दारा खेती से संबंधित अपनी समस्याओं के लिए मोबाइल से मैसेज करने पर उन्हे कोई मदद नहीं मिल पाती है। यहां पर तिलडेगा के उन्नतशील किसान मनोज अम्बस्थ ने बताया कि खरीफ फसल पर कीट प्रकोप और प्राकृतिक विपदा ने अनेक किसानों के माथे पर चिंता की लकीर बढ़ा दी है। इस किसान का कहना था कि धान तथा अन्य खेती के बारे में कृषि वैज्ञानिकों से उचित सलाह नहीं मिल पा रही हैं। किसानों व्दारा मोबाइल पर मैसेज करने के बाद कृषि विभाग का सूचना तंत्र से कोई जवाब नहीं मिल पा रहा है। किसानों में कृषि विभाग का अमला की इस दिषा में बेरुखी को लेकर काफी आक्रोश व्याप्त है।