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शनिवार, 24 मई 2014

आइस्क्रीम केक से मनाया जा रहा बर्थ डे

 पार्लर पर आइस्क्रीम के शौकीन
संडे स्टोरीः
   मिक्स फ्लेवर बच्चों को ज्यादा पसंद
   रमेश शर्मा/पत्थलगांव/
   आइस्क्रीम वैसे तो हर उम्र के लोगों की पसंद होती है ,लेकिन बच्चों के बीच इसका खासा क्रेज है। गर्मी के दिनों में बच्चों के साथ बड़ों की पसंद के मद्देनजर शहर में ब्रांडेड कम्पनियों के कई आइस्क्रीम पार्लर खुल गए हैं। गर्मी का मौसम में आइस्क्रीम के दाम में 20 फीसदी इजाफा होने के बाद भी दुकानदारों को ग्राहकों का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है।
          इन दिनो गर्मी का मौसम में डिफरेंट फ्लेवर के साथ आइस्क्रीम का स्वाद लोगों को खूब रास आ रहा है। बच्चों को कार्टून करेक्टर की पंसद को देखते हुए आइसक्रीम कम्पनियों ने इस वर्ष डिफरेंट शेप में कई तरह की चाकलेटी आइस्क्रीम प्रस्तुत की है। यहंा के दुकानदारों का कहना है कि पहले बच्चों की पसंद केवल चोको बार रहती थी, पर अब टीवी में तरह तरह की आइस्क्रीम देख कर इसकी डिमांड कस्बों में भी पहुंच गई है। इन दिनो ग्राहकों की पसंद के अनुसार आइस्क्रीम पार्लर में हैंड टू हैंड आइस्क्रीम को डेकोरेट भी किया जा रहा है। आइस्क्रीम में चॉकलेट का टेस्ट मिलने से बच्चों को यह आयटम काफी रास आ रहा है। 
नए टेस्ट की आइस्क्रीम
       गर्मी के दिनों में जिनका बर्थ डे आता है, वे अब आइस्क्रीम केक के साथ इस दिन को सेलिब्रेट कर रहे हैं। यहाँ सेन्ट्रल रेस्टोरेन्ट के संचालक पिन्टू भाटिया ने बताया कि क्रीम वेल ने समर सीजन में आइस्क्रीम केक प्रस्तुत किया है। उन्होने बताया कि आइस्क्रीम केक में ड्रायफ्रूट का स्वाद के साथ अपने दोस्तों को सर्व करके बच्चों को जन्म दिन की खुशी और बढ़ जाती है। इसके अलावा नए फलेवर्स में डबल चाकलेट थैरोपी, ब्राउनी ब्रेक, कोन, फ्रेस मंेगो विथ मलाई का फेमीली पैक भी ग्राहकों को खूब पसंद आ रही हैं ।
             दाम बढ़ने का नहीं कोई असर
    इन दिनो शहर के आइस्क्रीम पार्लर पर देर शाम तक ग्राहकों की उपस्थिति देखी जा रही है। यहां बस स्टैण्ड पर ही दर्जन भर आइस्क्रीम पार्लर के अलावा रायगढ़ रोड़, अम्बिकापुर रोड़ पार्लरों में विभिन्न नामचीन कम्पनियों की आइस्क्रीम की ढेर सारी वैराइटी उपलब्ध हैं। आइस्क्रीम के शौकिनों का कहना है कि पिछले साल की तुलना में लगभग 20 प्रतिशत दाम बढ़ जाने के बाद भी स्ट्रॅाबेरी आइस्क्रीम के साथ फाइव स्टार जैसी आइस्क्रीम के स्वाद का कोई जवाब नहीं है।


शनिवार, 17 मई 2014

जशपुर में दार्जिलिंग से बेहतर पर्यटन स्थल

पत्थलगांव की पर्यटक शुभि शर्मा पहुंची दार्जिलिंग
पर्यटन को बढ़ावा देने से मिलेंगे रोजगार के नए अवसर
 रमेश शर्मा /पत्थलगांव /
      भीषण गर्मी से परेशान होकर यहाँ के लोग पहाड़ों पर छुटिटयों का आनंद लेने जा रहे हैं। लेकिन वहाँ से वापस लौट कर दार्जिलिंग से बेहतर जशपुर के पर्यटन स्ािलों को बेहतर बता रहे हैं। यहाँ के पर्यटन स्थलों तक आवागमन की अच्छी सुविधा के अभाव के साथ ठकरने की व्यवस्था नहीं होने से यहाँ की सुखद जलवायु और उंचे नीचे पहाड़ों का बाहर के पर्यटकों को लाभ नहीं मिल रहा है। इस दिशा में ठोस उपाय कर स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराए जा सकते हैं।
   बीते वर्ष केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री चार धाम की यात्रा में प्राकृतिक कहर के चलते इस बार ज्यादातर पर्यटकों ने दार्जिलिंग, हिमाचल का रूख किया है। यहाँ से दार्जिलिंग की सैर कर वापस लौट कर आए नितेश शर्मा ने अपनी चार वर्षीय बिटिया शुभि शर्मा की तस्वीर उपलब्ध कराई है।
   उन्होंने बताया कि इस बार दार्जिलिंग के गंगटोक आदि रमणीय स्थलों पर छत्तीसगढ़ से पहुंचे पर्यटकों की अच्छी खासी भीड़ है। लेकिन दार्जिलिंग के महंगे पर्यटन स्थलों का जशपुर की सुखद जलवायु से मुकाबला नहीं है। उन्होंने कहा कि यहाँ बगीचा क्षेत्र में कैलाश गुफा, खुड़िया रानी गुफा और रजपुरी जलप्रपात को थोड़ा सवांर कर वहाँ वाहनों का आवागमन सुगम कर दिया जाए तो यहाँ भी गर्मी के दिनों में पर्यटकों का मजमा लग सकता है। श्री शर्मा का कहना था कि जशपुर जिले के पर्यटन स्थलों को विकसित करके यहाँ भी पर्यटकों को बढ़ा कर स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अनेक नए अवसर बनाए जा सकते हैं।

गुरुवार, 15 मई 2014

निजी महत्वाकांक्षाओं से बिखरते हैं परिवार

जगनलाल अग्रवाल का संयुक्त परिवार
    आज  संयुक्त परिवार दिवस पर विशेष: 
रामदास अग्रवाल का संयुक्त परिवार
 दूर दूर रह कर भी भावनात्मक जुड़ाव जरूरी
 रमेश शर्मा /            पत्थलगांव/    
           अधिकांश लोगों को संयुक्त परिवार की मधुर स्मृतियंा याद होने के बाद भी अब ज्यादा सदस्यों का घर कम ही दिखाई पड़ता है। पुराने लोगों का कहना है कि निजी महत्वाकांक्षा के चलते परिवार का बिखराव के बाद एकल परिवारों की गिनती बढ़ गई है। बुजुर्ग लोगों का भी मानना है कि संयुक्त परिवार में रहने का एक अलग ही आनंद है।जब तक परिवार संयुक्त रहता है, उसका हर सदस्य अनुशासन में रहता है। उसको कोई भी गलत कार्य करने से पहले बहुत सोचना समझना पड़ता है। लेकिन एकल परिवार में सही मार्ग दिखाने वाला नहीं रहने से कई लोग भटक कर परेशानी में पड़ जाते हैं।
           यहाँ के प्रमुख समाजसेवी रामदास अग्रवाल का कहना है कि बदलते सामाजिक परिवेश में दूर दूर रह कर भी भावनात्मक जुड़ाव को मजबूती से कायम रखने की बात पर ही ध्यान देना चाहिए। एक शहर में ही रहने वाले परिवार के सदस्यों को आपसी मेलजोल में थोड़ा मिठास बढ़ाकर भावनात्मक संबंध को सुदृढ़ रखना चाहिए।
         श्री अग्रवाल का कहना था कि मुश्किल और जरूरत के मौके पर अपना परिवार की याद आने के बाद भी आज बदलते सामाजिक परिदृश्य में संयुक्त परिवार तेजी से टूट रहे हैं और उनकी जगह एकल परिवार लेते जा रहे हैं। लेकिन बदलती जीवनशैली और प्रतिस्पर्धा के दौर में तनाव तथा अन्य मानसिक समस्याओं से निपटने में केवल अपनों का साथ ही अहम भूमिका निभा सकता है। उन्हांेने कहा कि संयुक्त परिवार में आस पास काफी लोगों की मौजूदगी से एक दूसरे का आत्मविश्वास और एक सहारा का काम करती है। उन्होंने बताया कि संयुक्त परिवार में जहाँ बच्चों का लालन पालन और मानसिक विकास अच्छे से होता है, वहीं वृद्धजन का अंतिम समय भी शांति और खुशियों के बीच गुजरने लगता है।
    श्री अग्रवाल का कहना था कि वृद्धजनों को अपनों से प्यार नहीं मिल पाने से ही उनकी चिड़चिड़ाहट दिखती है, लेकिन संयुक्त परिवार में रह कर ही वृद्धजन अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर पाते हैं। श्री अग्रवाल का कहना था कि हमारे बच्चे संयुक्त परिवार में दादा दादी, काका काकी, बुआ आदि का प्यार की छाँव में खेलते कूदते बड़े होते हैं। इस दौरान उन्हें परिवार के संस्कारों का भी ज्ञान मिलने लगता है। रामदास अग्रवाल का कहना था कि पहले प्रत्येक परिवार में कुटुम्ब व्यवस्था होती थी, पर अब आपस में ईर्ष्या और पश्चिमी सभ्यता का चलन बढ़ जाने से ज्यादातर परिवार एकल परिवार में बदलते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज इक्का दुक्का घरों में ही संयुक्त परिवार का दृश्य देखने को मिलता है। इसमें भी अब शिकवा शिकायत और बिखराव की बातों पर ही जोर दिया जा रहा है। उन्हांेने कहा कि भले ही परिजन दूर हो जाएँ, पर आपस का प्रेम कम नहीं होना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि भावनाओं के धागे से पूरे परिवार को जोड़ कर रखा जाए। यह तभी संभव हो सकता है जब हम आपस का मेल मिलाप को निरंतर बनाऐ रखें। खास मौके पर सभी लोग एक साथ मिलने से भी दूरियाँ कम होती हैं। परिवार में शादी ब्याह, जन्मदिन या खुशी के अवसर पर एक साथ मिलने का प्रयास को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।
                                                      65 सदस्यों का संयुक्त परिवार
    यहाँ के गिने चुने संयुक्त परिवारों में से एक जगनलाल अग्रवाल का भी परिवार है। 65 सदस्यों का यह परिवार अपने व्यावसायिक कामकाज से भले ही अलग अलग रहने लगा हैं, लेकिन सभी सदस्यों का आपसी प्यार यथावत है। शादी ब्याह, अथवा किसी भी सुख दुख में छः भाई और तीन बहनों के परिवार के सभी सदस्य अपना व्यवसाय छोड़कर एक छत के नीचे बैठ जाते हैं। ऐसे अवसर में इस संयुक्त परिवार का हंसी मजाक देखते ही बनता है। इस परिवार को पिकनिक जाने के लिए एक बस भी छोटी पड़ जाती है।
    इस परिवार के मुखिया जगनलाल अग्रवाल का कहना था कि संयुक्त परिवार में अगर सुखी रहना है, तो लेने की प्रवृति का परित्याग कर देने की प्रवृत्ति रखनी पड़ेगी। परिवार के हर सदस्य का नैतिक कर्तब्य है कि वे एक दूसरे की भावनाओं का आदर कर आपस में तालमेल रख कर चलें। ऐसा कोई कार्य न करें, जिससे दूसरे की भावनाओं को ठेस पहुंचे। संयुक्त परिवार में किसी भी विषय को अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा नहीं बनाने से परिवार के सदस्यों का आपसी प्रेम बना रहता है। जगनलाल अग्रवाल का कहना था कि थोड़ गम खा कर और त्याग करके ही संयुक्त परिवार चलाया जा सकता है। इसमें भी सबसे अधिक अहम भूमिका परिवार के मुखिया की बन जाती है। उन्होंने कहा कि आज छोटा भाई बड़े भाई से राम बनने की अपेक्षा करता है,किन्तु स्वयं भरत बनने को तैयार नहीं। इसी तरह बड़ा भाई छोटे भाई से अपेक्षा करता है कि वह भरत बने लेकिन स्वयं राम की भूमिका कर पाने में असफल हो जाता है। उन्हांेने कहा कि सास बहू से अपेक्षा करती है कि वह उसको मां समझे, लेकिन सवयं बहू को बेटी मानने तैयार नहीं। बहू चाहती है कि सास मुझको बेटी की तरह माने, लेकिन स्वयं सास को मां जैसा आदर नहीं दे पाती। यह परस्पर विरोधाभास ही सभी परिवार में कलह का मूल कारण होता है।इसके लिए हमें थोड़ा सा त्याग करने की जयरत पड़ती है। इससे संयुक्त परिवार टूटने से बच सकते हैं।उनहोने कहा कि संयुक्त परिवार में सभी सदस्य एक दूसरे के आचार व्यवहार पर निरंतर निगरानी बनाए रखते हैं।यही वजह है कि परिवार में किसी भी सदस्य की अवांछनीय गतिविधियों पर अकुंश लगा रहता है। परिवार में बुजुर्ग सदस्यों को सम्मान देने से शराब,जुआ या अन्य कोई नशा जैसी बुराईयों से बचा रहता है। परिवार में यह सिलसिला लगातार चलाया जा सकता है। इससे संयुक्त परिवार की अपनी गरिमा और बढ़ जाती हैं।
                                                     आत्म विश्‍वास के साथ त्याग भी
         यहाँ के प्रीतपाल भाटिया का कहना था कि संयुक्त परिवार में बच्चों के लिए सर्वाधिक सुरक्षित और उचित विकास का अवसर प्राप्त होता है। उन्होने कहा कि बच्चे की इच्छाओं और आवश्यकताओं का अधिक ध्यान रखा जा सकता है। श्री भाटिया का कहना था कि बच्चे को दादा दादी से प्यार के साथ ज्ञानवर्धक शिक्षा भी मिलती है। यह अवसर एकाकी परिवार में बहुत कम रहता है।उन्होने कहा कि एकल परिवार में बच्चे के मस्तिष्क की संरचना अलग होती है। यही वजह है कि वह भी आगे चल कर एकल परिवार को पसंद करने लग जाते हैं।श्री भाटिया का कहना था कि एक नई सोच के साथ परिवार को आज भी संयुक्त रखा जा सकता है, बशर्ते थोड़ा त्याग और आत्मविश्वास होना चाहिए।

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शनिवार, 10 मई 2014

मॉं जैसा विराट हृदय और कहाँ

श्रीमती पुष्पा लकड़ा अनाथ बच्चा संजू के साथ
       मदर्स डेः  संडे स्पेशल स्टोरी    
    ममता की छाँव में कभी नहीं रहता भेदभाव
      रमेश शर्मा / पत्थलगांव
     मां केवल अपने ही बच्चों के लिए विराट हृदय नहीं रखती है , बल्कि उसकी ममता की छांव में पलने वाला दूसरे बच्चे को भी कभी परायेपन का अहसास नहीं हो पाता। इस दुनिया में मां का विराट हृदय के अलग अलग किस्सों के पीछे मां का दृढ़ विश्वास और सुखद अनुभूति के साथ अपनापन का सुखद अहसास भी रहता है। तभी मां को पूरी दुनिया में सर्वोच्च स्थान दिया गया है।
     यहाँ पाकरगांव में 3 साल पहले प्रसव के दौरान अपनी मां का साथ छुट जाने के बाद एक नन्हे शिशु को नहीं मालूम था कि उसका पिता शांतिप्रकाश बेक भी उसके पालन पोषण की जिम्मेदारी नहीं उठाएगा। पाकरगांव में गरीबी के बीच जीवन यापन करने वाला शांतिप्रकाश बेक का परिवार में तीन साल पहले अचानक नन्हे शिशु की किलकारी सुनाई दी थी। श्री बेक की पत्नी श्रीमती जीवन्ती ने अपने प्रथम प्रसव के दौरान सुन्दर और स्वस्थ्य शिशु को जन्म देने के बाद उसका दुखद निधन हो गया था।
    इस महिला का पति पहले से ही शराब के सेवन का आदि था। प्रसव के बाद उसकी पत्नी की असामयिक मौत के बाद वह अपने घर की जिम्मेदारी सम्हालने के बजाए बगैर किसी को कुछ बताए वह अचानक घर से गायब हो गया। शांतिप्रकाश बेक अपने सप्ताह भर के नन्हे बच्चे को अकेला छोड़ कर घर से गायब हो जाने के बाद नन्हे शिशु के सिर पर कोई भी सहारा नहीं था। सबसे दुखद पहलू यह रहा कि बेक परिवार में नन्हे बच्चे के आगमन के बाद वहाँ एक बार भी खुशियां नहीं मनाई गई थी।
श्रीमती पुष्पा अपने दो बेटे व एक बेटी के बीच संजू के साथ
  महज एक सप्ताह के बाद इस नन्हे बच्चे का पिता भी घर छोड़ कर अचानक गायब हो जाने से आस पास के लोग स्तब्ध रह गए थे। दो चार दिन के नन्हे बच्चे की पास पड़ोस के लोगों ने देख रेख कर दी थी। लेकिन इस बच्चे को अपना कर उसका लालन पालन करने के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहा था। नन्हे बच्चे की परवरिश करने का सवाल को देख कर जब सभी खामोश हो गए तो पाकरगांव की श्रीमती पुष्पा लकडा नामक इस महिला ने साहस का परिचय दिया।
   श्रीमती पुष्पा लकड़ा के दो बेटी और दो बेटों का अपना भरा पूरा परिवार होने के बाद भी उसने अनाथ बच्चे को अपने साथ रखने का प्रस्ताव दिया था। अनाथ बच्चे के लिए श्रीमती पुष्पा लकड़ा का प्रस्ताव सुन कर गांव के सभी लोगों ने एक स्वर से अपनी सहमति दे दी थी। श्रीमती पुष्पा लकड़ा ने पिछले तीन साल से इस नन्हे बच्चे को स्नेह ,ममता, और वात्सल्य देने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। इसी के फलस्वरूप संजू नामक इस बच्चें के जीवन में फिर से खुशियॉं भर गई हैं।
          बड़ा होकर कुछ बन जाए, तभी मिलेगा लक्ष्य
    श्रीमती पुष्पा लकड़ा का कहना है कि उसके चार बच्चों से भी अधिक संजू प्यारा लगता है। उसका कहना था कि यह बालक बड़ा होकर कुछ बन जाएगा, तभी उसे कुछ सकून मिल सकता है। इसके पहले वह अपना लक्ष्य को अधूरा ही मानती है। पुष्पा लकड़ा ने अपने चारों बच्चों की तरह संजू को भी प्यार देने में कोई कमी नहीं रखी है। बल्कि संजू को तो वह एक पल के लिए भी अपनी आंखों से दूर नहीं होने देती है। श्रीमती पुष्पा लकड़ा की बड़ी बिटिया स्मृति लकड़ा इंजीनियरिंग कालेज बिलासपुर में व्दितीय वर्ष की छात्रा है। श्रीमती लकड़ा पाकरगांव में अपने बेटे स्माइल, सुलेखा और इनुश की तरह 3 वर्षीय संजू को भी हर वक्त अपने ही साथ रखती है। श्रीमती लकड़ा का पति लचन लकड़ा का कहना है कि उन्हे अपने घर में संजू कभी भी पराया नहीं लगता है। इस परिवार में संजू के आने से इनकी खुशियंा दोगुनी हो गई हैं ।
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मदर्स डे पर ..... मां की ममता
            माँ की ममता
भास्कर न्यूज/ पत्थलगांव
     विदेशी संस्कृति की देन के बाद भी मदर्स डे को लेकर कोई विवाद नहीं रहता है। दरअसल मां वह शब्द है जो किसी भी व्यक्ति के जीवन में सबसे ज्यादा अहमियत रखता है। यहाँ अन्नू शर्मा का कहना है कि उसकी नन्ही परी को एक छींक भी आती है तो वह मां को ही याद करने लगती है। उसकी परेशानी और हर मुश्किल घड़ी में उसे मां का पूरा सहयोग मिलता है। अन्नू शर्मा का कहना है कि मां की ममता के आगे सभी खुशियॉं बौनी हो जाती हैं।

बुधवार, 7 मई 2014

प्रदूषण से बढ़े अस्थमा के मरीज


डॉक्टरों के अनुसार सही समय पर
  इलाज से हो सकती है रोकथाम

पत्थलगांव/          रमेश शर्मा
    शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहे प्रदूषण की वजह से स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर दिखाई दे रहा है। इन दिनो प्रदूषण से बचने के उपाय नहीं करने से सबसे अधिक श्वास संबंधी विकार लोगों में दिखाई दे रहा है। इसी वजह अस्थमा के मरीज भी बढ़ रहे है। इसके लिए थोड़ी सावधानी और सही समय पर इलाज कराने से अस्थमा की रोकथाम हो सकती है। मंगलवार को विश्व अस्थमा दिवस के अवसर पर यहाँ सिविल अस्पताल में जागरूकता गोष्ठी का आयोजन किया गया।
     इस गोष्ठि के आयोजक डा.बसंत सिंह ने बताया कि चिकित्सा जगत के डाक्टरों के अनुसार मई महिने के पहले मंगलवार को अस्थमा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य जीवन के लिए हमें थोड़ी सावधानी बरत कर इस तरह की बीमारियों से सजग रहने की जरूरत है। डॉ. सिंह ने कहा कि शहर में तेजी से विकास तो हो रहा है, लेकिन मुख्य सड़क और गांव की गलियों में धूल पसरी पड़ी है, यही वजह ज्यादातर लोग धूल की चपेट में आकर बीमारियों के शिकार भी हो रहे हैं। उन्होने कहा कि इन दिनो लगातार अस्थाम से पीडित मरीजों की संख्या बढ़ी है। इसकी रोकथाम के लिए सभी को सावधानी बरतनी होगी।
   आयुर्वेद चिकित्सक श्रीमती सुरेखा भगत का कहना था कि अस्थमा एक प्रकार की बीमारी है जिसमें श्वास नलियों का संकुचन हो जाता है। उनमे सूजन आ जाती है। इससे मरीज को सांस लेने में परेशानी होती है। धूल से बचाव के उपाय नहीं करने की वजह से ही इन दिनों ऐसे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह बात सामने आई है कि अस्पताल में प्रतिदिन आने वाले मरीजों में 10 प्रतिशत मरीज अस्थमा होते है। डा.सुरेखा भगत का कहना था कि यह रोग लाइलाज नहीं है। इसका समय पर उचित उपचार व आवश्यक सावधानियों बरतने से इस रोग से बचा जा सकता है।तमता स्वास्थ्य केन्द्र के डॉ. हरिशंकर यादव का कहना था कि लोगों में धूम्रपान की लत और तरह तरह के प्रदूषण इस बीमारी के पनपने का कारण बन रहे हैं।लोगों को सावधान रहते हुए अस्थमा के प्रकोप से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि श्वांस संबंधी परेशानी होने पर डाक्टरों से सलाह लें और नियमित उपचार कराऐं। 
     इस संगोष्ठी में सुखरापारा के एनएमए अकलूराम का कहना था कि दिनचर्या में आया बदलाव भी लोगों को बीमारी परोसने लगा है। इस बदलाव के चलते ही युवा भी अस्थमा बीमारी की चपेट में आने लगे हैं। उन्होंने कहा कि अस्थमा बीमारी की प्रमुख जड़ प्रदूषण है। दिनो दिन बढ़ती धूल व धुएँ के चलते लोग अस्थमा का शिकार बनते जा रहे हैं। उन्हाेंने कहा कि लोगों को हरियाली बढ़ाने में अपना योगदान देना चाहिए। इसके अलावा धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति धूल के उठते गुबार, कारखानों से निकलने वाले धुएँ से बचने की दिशा में ठोस उपाय करने चाहिए।
                     क्या है अस्थमा
           डा. पी. सुथार का कहना था कि श्वांस नली या इससे संबंधित हिस्सों में सूजन के कारण फेफड़ों में हवा जाने वाले रास्ते में रूकावट आती है। इससे सांस लेने में काफी परेशानी होती है। शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए हवा का फेफड़ों के अन्दर बाहर आना जाना जरूरी है। इस प्रक्रिया में रूकावट आना ही अस्थमा रोग के लक्षण हैं। डॉ. सुथार ने बताया कि अस्थमा की शुरूवात वायरल इंफेक्शन से होती है। यदि बार बार सर्दी, बुखार की शिकायत हो तो यह एलर्जी का संकेत है। सही समय पर इलाज करवा कर और संतुलित जीवन शैली से एलर्जी से बचा जा सकता है। समय पर इलाज नहीं कराने से ही एलर्जी ही अस्थमा का रूप ले लेती है।
        अस्थमा दिवस पर आयोजित इस गोष्ठि में वरिष्ठ पत्रकार राजेश अग्रवाल, वेदप्रकाश मिश्रा शक्तिनाथ मिश्रा पैथोलॅाजी के जानकार कमलेश गुप्ता,जयप्रकाश गुप्ता,दिनानाथ पटेल कु पुनम कुजूर कु अनुगामी तथा पूरक पोषण केन्द्र में उपस्थित सैकड़ो लोग उपस्थित थे।
अस्थमा के यह है कारण:-
1       अानुवांशिक कारणों से भी होता है अस्थमा।
        बाहरी वातावरण में धूल व प्रदूषण के संपर्क में आने से।
        आद्योगिक क्षेत्रों में काम करने वाले भी हो सकते है पीड़ित।
        मौसम परिवर्तन होने पर या अधिक ठंड या गर्मी से भी हो सकता है अस्थमा।
यह है बचाव के उपाय:-
        बाहरी वातावरण में धूल से बचाव करना चाहिए।
        खानपान में भी अधिक ठंडी या खट्टी वस्तुओं से परहेज करना चाहिए।
        एसी में रहने के बाद बहुत गर्मी में निकलने से बचना चाहिए।

अस्थमा दिवस पर आयोजित इस गोष्‍ठी को काफी लाभप्रद कार्यक् बताया । यह एक श्वास संबंधित रोग है, यह लाइलाज बीमारी नहीं है। आवश्यक उपचार से इसका इलाज किया जा सकता है। इस रोग की रोकथाम के लिए जागरूकता जरूरी है। उन्होंने कहा कि लोगों को सबसे पहले लोगों को सजग रहने की जरूरत है। घरलू कचरे को को बाहर रख कर जलाने के बजाए नगर निकाय से सहयोग लेकर इसे दूर नष्ट करें।
     डॉ0 परिवेश मिश्रा अध्यक्ष इंडियन मेडिकल एसोसिएशन अधिकार  पत्थलगॉंव

मंगलवार, 6 मई 2014

मोतियाबिंद ऑपरेशन से विभाग ने खींचे हाथ

अस्पताल में नेत्र रोगियों की कतार
सिविल अस्पताल में विशेषज्ञ सहित सभी सुविधाएँ उपलब्ध 
आंख के मरीजों को काम नहीं आ रही समाजसेवियों की मदद
मोतियाबिंद के मरीजों को अंधेपन का खतरा बढ़ा
  रमेश शर्मा /पत्थलगांव/
    यहाँ मोतियाबिंद के मरीजों को समय पर आपरेशन की सुविधा नहीं मिल पाने से उनके लिए अंधेपन का खतरा बढ़ने लगा है। एक साल पहले पत्थलगांव विकासखंड में स्वास्थ्य विभाग व्दारा कराया गया सर्वे में गरीब तबके से ताल्लुक रखने वाले 573 मरीज मोतियाबिंद के रोग से पीड़ित पाए गए थे। इन मरीजों को अभी तक स्वास्थ्य विभाग से आपरेशन कराने की सुविधा नहीं मिल पाई है। इससे मोतियाबिंद के मरीजों के सामने रोशनी गंवांने की समस्या मंडाराने लगी है।
     बताया जाता है कि यहाँ पर ज्यादातर मरीज राजधानी रायपुर अथवा अन्य निजी चिकित्सालयों में जाकर मोतियाबिंद का इलाज कराने की स्थिति में नहीं हैं। गरीब तबके के इन मरीजों को सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में आयोजित होने वाले मोतियाबिंद शिविर का बेकरारी से इंतजार रहता था। पर अब ऐसे शिविर लगने बंद हो जाने से यहाँ के मरीजों की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
    प्रदेश के विभिन्न जिलों में वर्ष 2011 एवं 2012 में मोतियाबिंद के मरीजों का आपरेशन के दौरान अनेक मरीजों की आंखों की रोशनी चले जाने के बाद अब स्वास्थ्य विभाग ने मोतियाबिंद आपरेशन का काम से हाथ खींच लिए हैं।मोतियाबिंद के मरीजों की सहायता के लिए स्वयं सेवी संस्था व्दारा भी की जा रही पहल को भी स्वास्थ्य विभाग अनदेखा कर रहा है।
 प्रदेश का सबसे बड़ा मोतियाबिंद आपरेशन
    पत्थलगांव सिविल अस्पताल में सितंबर 2012 में आयोजित एक शिविर में मोतियाबिंद के 1153 आपरेशन का सर्वोच्च कीर्तिमान स्थापित किया गया था। इस बृहद शिविर के बाद मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह ने कलेक्टर सहित स्वास्थ्य अमले को बधाई दी थी। इसके बाद अब यहाँ इक्का दुक्का मरीजों का भी मोतियाबिंद आपरेशन नहीं हो पा रहा है।
    पत्थलगांव सिविल अस्पताल में नेत्र विशेषज्ञ सहित अन्य सभी सुविधाऐं उपलब्ध हैं। यहाँ शल्य चिकित्सा के महँगे उपकरण के अलावा सर्वसुविधायुक्त आपरेशन कक्ष भी उपलब्ध है। लेकिन पिछले वर्षो में मोतियाबिंद के आपरेशन में कई मरीजों की रोशनी चले जाने से अब यहाँ तरह तरह के बहाने करके मोतियाबिंद का आपरेशन करने में अपने हाथ खींच रहे हैं। सिविल अस्पताल के सूत्रों का कहना है कि बीते वर्ष यहाँ एक भी मोतियाबिंद आपरेशन का कैम्प आयोजित नहीं हो पाया। ऐसा नहीं है कि यहाँ मोतियाबिंद के मरीज नहीं है। पत्थलगांव सिविल अस्पताल के बीएमओ डा.जेम्स मिंज का कहना है कि एक साल पहले इस अंचल में स्वास्थ्य विभाग व्दारा कराया गया सर्वे में 573 मरीजों के नाम पते दर्ज किए गए हैं। इनमें से कई ऐसे भी मरीज हैं जिनको समय पर मोतियाबिंद का आपरेशन की सुविधा नहीं मिलने से उनकी आंखों की रोशनी समाप्त हो सकती है। समाजसेवी संस्था ने बढ़ाए थे मदद के हाथ
    पत्थलगांव क्षेत्र में मोतियाबिंद मरीजों की अधिक संख्या को देखते हुए बीते वर्ष यहाँ की समाजसेवी संस्था ग्रामीण विकास परिषद और रोटरी क्लब ने पत्थलगांव सिविल अस्पताल में मोतियाबिंद आपरेशन का बृहद कैम्प आयोजित करने की लिखित पेशकश की थी। लेकिन स्वास्थ्य अमला ने दोनो ही बार अलग अलग बहाने करके अपनी असमर्थता जाहिर कर दी थी। 
बढ़ सकता है अंधेपन का खतरा
    प्रमुख समाजसेवी एवं नेत्र विशेषज्ञ डा.परिवेश मिश्रा का कहना है कि केन्द्र सरकार के दिशा निर्देश के मुताबिक प्रति हजार में 4 व्यक्तियों को मोतियाबिंद होता है। इसके अनुसार राज्य में 1 लाख 20 हजार से अधिक आपरेशन सालाना होने चाहिए। ऐसे में लक्ष्य का यदि पांच प्रतिशत ही आपरेशन होंगे तो मरीजों के लिए अंधेपन का खतरा बढ़ना स्वाभाविक बात है।  
मोतियाबिंद का केवल 5 फीसदी लक्ष्य
    दरअसल स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी प्रदेश के कवर्धा में सितंबर 2011, बालोद सितंबर 2011, दुर्ग 2012,बागबाहरा 2012 का नेत्र कांड घटनाओं के डर से इस काम में हाथ डालने का साहस नहीं कर पा रहे हैं। जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी डॉ.बीबीएस बोर्डे ने बताया कि प्रदेश में मोतियाबिंद के आपरेशन शिविरों में कई मरीजों की आखों की रोशनी चले जाने के बाद से काफी सावधानियां बरती जा रही हैं। उन्होंने बताया कि बीते वर्ष जिले में मोतियाबिंद के मरीजों का आपरेशन करने का लक्ष्य 3000 रखा गया था लेकिन पूरे जिले में एक साल के दौरान केवल पांच प्रतिशत अर्थात 116 मोतियाबिंद के आपरेशन हो पाए हैं।
    डॉ.बोर्डे ने बताया कि नेत्र शल्य चिकित्सा के दिशा निर्देश के अनुसार कोई भी विशेषज्ञ चिकित्सक एक दिन में 20 नेत्र मरीजों का ही आपरेशन कर सकेगा। इसके लिए मरीज को तीन दिन तक अनिवार्य रूप से अस्पताल में भर्ती रख कर उसकी समुचित देखरेख की जानी है। उन्हो1ने कहा कि जिले में केवल दो नेत्र विशेषज्ञ होने से भी यह काम बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। डॉ.बोर्डे का कहना था कि मोतियाबिंद के मरीजों को राहत देने के लिए जल्द ही ठोस कार्ययोजना तैयार की जाएगी।