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बुधवार, 23 जुलाई 2014

खेल खेल में पढ़ाने की पद्धति पर लगा ग्रहण

           एमजीएमएल शिक्षा पद्धति की
 सामग्री हुई अनुपयोगी
 कबाड़ में बदली शिक्षा सामग्री
 रेडियो से अंग्रेजी पढ़ाना भी बंद
  रमेश शर्मा/   पत्थलगांव/  
         प्राथमिक स्कूल के बच्चों को भारी भरकम बस्ते का बोझ से छुटकारा दिलाने के लिए शुरू की गई एमजीएमएल अर्थात खेल खेल में शिक्षा देने की पद्धति अब दम तोड़ती नजर आ रही है। सरकारी स्कूलों में इस पद्धति के तहत खरीदी गई लाखों रू.की सामग्री अब कचरे के ढ़ेर में बदलने लगी है। इसके पहले प्राथमिक स्कूलों में रेड़ियों के माध्यम से अंग्रेजी पढ़ाने की शुरूवात की गई थी। बगैर सोच विचार के नन्हे बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर बार बार प्रयोग करने से बच्चों पर विपरित असर पड़ रहा है।
      साल भर पहले तक सरकारी स्कूलों में छोटे बच्चों को खेल खेल में पढ़ाई का काम शुरू किया गया था। शिक्षक शिक्षिकाओं व्दारा स्कूली बच्चों को महापुरूष व पशु पक्षी के चित्र तथा गिनती के साथ शिक्षाप्रद बातें सिखाई जाती थी। सरकारी स्कूलों में खेल खेल की पद्धति को सफल बनाने के लिए शासन ने भारी भरकम राशि खर्च की थी। स्कूल के बच्चों को खेल खिलौने की इस सामग्री को व्यवस्थित ढंग से सहेज कर रखने के लिए मंहगी प्लास्टिक की ट्रे के अलावा लकड़ी का फर्नीचर भी उपलब्ध कराया गया था। इस शिक्षा पद्धति के माध्यम से छोटे बच्चों को बेहतर तरीके से समझा कर ज्ञानवर्धन कराने के लिए शिक्षकों को प्रशिक्षण देने के नाम पर लाखों रूपयों का खर्च भी किया गया था। लेकिन विडंबना यह है कि अब खेल खेल में पढ़ाने वाली समूची सामग्री  को कमरों में बंद कर वहंा ताला जड़ दिया गया है। इस शिक्षा सामग्री को छोटे बच्चे याद तो करते हैं लेकिन शिक्षक इस पद्धति को अधिकारियों का तुगलकी फरमान बता कर चुप्पी साध लेते हैं।
                  अंग्रेजी शिक्षा के रेडियो भी बेकार
          एमजीएमएल शिक्षा पद्धति की
 सामग्री हुई अनुपयोगी
     शिक्षकों का कहना है कि इसके पहले भी स्कूल में छोटे बच्चों को अंग्रेजी की शिक्षा देने के लिए दोपहर रेडियो के माध्यम से पढ़ाने की व्यवस्था कराई गई थी। सभी स्कूलों में खरीदे गए रेडियो अब कचरे के ढेर में पड़े हैं। शिक्षकों का कहना है छोटे बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर बार बार प्रयोग करने से उन पर विपरित असर पड़ रहा है।
    प्राथमिक स्कूल के बच्चों के लिए लागू की गई एमजीएमएल पद्धति को स्कूल के कमरे में बंद कर देने के बाद अब फिर से बच्चों को बस्ता लेकर स्कूल पहुंचना पड़ रहा है। खेल खेल में पढ़ाई के लिए खरीदी गई सामग्री पर धूल की मोटी परत जम चुकी है। ज्यादातर स्कूलों में एमजीएमएल पद्धति की पढ़ाई के लिए आकर्षक साज सज्जा के साथ पेंटिग के नाम पर भी भारी भरकम खर्च किया गया था। इन सब सामग्रियों का अब पढ़ाई में उपयोग नहीं हो पाने से स्कूल के शिक्षकों ने उन कमरों पर ताला जड़ रखा है।
       एमजीएमएल पद्धति से छोटे बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक शिक्षिकाओं का कहना था कि यह पद्धति जल्द बाजी में तैयार की गई थी। इस पद्धति से बच्चों को पढ़ाने पर उनका मानसिक विकास सही तरिके से नहीं हो पा रहा था। खेल खेल में बताई गई शिक्षा की बातों को बच्चे अगले ही क्षण भूल कर दूसरे सवाल करने लगते थे। खेल खेल की पद्धति में शिक्षकों को अधिक मेहनत करने की वजह से शिक्षकों ने बगैर किसी आदेश के इस शिक्षा व्यवस्था को कमरों में बंद करना शुरू कर दिया था। 
            खेल खेल के बजाए सतत व व्यापक मूल्यांकन
     ब्लॅाक शिक्षा अधिकारी बरसाय पैंकरा ने बताया कि छोटे बच्चों की शिक्षा के लिए अब सतत एवं व्यापक मूल्याकंन पद्धति शुरू की गई है। इसमें बच्चों की प्रत्येक गतिविधि पर नजर रख कर उसे फार्म में दर्ज करना है। श्री पैंकरा का कहना था कि स्कूलों में रेडियो के माध्यम से अंग्रेजी की पढ़ाई और खेल खेल में पढ़ाई का काम बंद हर दिया गया है।इसके बदले अब स्कूली बच्चों का सतत एवं व्यापक मूल्यांकन की नई शिक्षा पद्धति पर बेहतर क्रियान्वयन कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।


सोमवार, 21 जुलाई 2014

सर्पदंश से डरने की जरुरत नहीं

 108 संजीवनी सेवा के स्टॉफ को दिया 
बीएमओ डा.जे मिंज ने दिया 
एनटी स्नेक वेनम उपचार का प्रशिक्षण
  अच्छी पहलः 
   108 संजीवनी सेवा में एनटी स्नेक वेनम भी उपलब्ध
   रमेश शर्मा/पत्थलगांव/
    108 संजीवनी सेवा वाहन में सर्पदंश के मरीजों को बचाने वाली जीवन रक्षक एनटी स्नेक वेनम दवा रखने की पहल ऐसे मरीजों के लिए वरदान साबित हो रही है। सर्पदंश के गंभीर मरीजों को अस्पताल लाने से पहले एनटी स्नेक वेनम का उपचार मिल जाने से ऐसे मरीजों को बचाने में चिकित्सकों को भी मदद मिलने लगी है। बीते सप्ताह दूरस्थ गांव काडरो और बालाझर के दो अलग अलग सर्पदंश पीड़ित मरीजों को त्वरित एनटी स्नेक वेनम लग जाने से दोनो मरीजों को उपचार के बाद बचा लिया गया।
    कलेक्टर हिमशिखर गुप्ता ने पिछले दिनो यहां सिविल अस्पताल का औचक निरीक्षण के बाद यहां सर्पदंश के अधिक प्रकरण देखने के बाद 108 संजीवनी सेवा वाहन में सर्पदंश की पर्याप्त मात्रा में दवा रखने के निर्देश दिए थे। श्री गुप्ता की इस पहल से ग्रामीण अचंल के लोगों ने स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर प्रसन्नता व्यक्त की है। ग्राम काडरो के अगरसाय को करैत नाम जहरीले सर्प के डस लेने के बाद उसके परिजनों ने 108 संजीवनी सेवा को मदद के लिए बुलाया था। इस वाहन के गांव में पहुंचने के बाद सर्प दंश पीड़ित मरीज की गंभीर हालत को देख कर संजीवनी सेवा के कर्मचारियों ने उसे मौके पर ही एनटी स्नेक वेनम देकर उसका उपचार प्रारम्भ कर देने के बाद इस मरीज को सिविल अस्पताल में भर्ति कराया गया था। यहां पर सर्पदंश के मरीज का उपचार कर उसे बचाने में कामयाबी मिली है। इसके पहले सर्पदंश के मरीजों को सिविल अस्पताल में भर्ती कराने के बाद ही एनटी स्नेक वेनम मुहैया हो पाती थी।इस अचंल में सर्पदंश पीड़ित मरीजों को नीयत समय के भीतर एनटी स्नेक वेनम का उपचार मिल जाने से ज्यादातर मरीजों को बचाने में सफलता मिली है। लेकिन कई बार मरीजों को झाड़ फूंक कराने के चक्कर में उसे अस्पताल तक पहुंचाने में विलंब कर देने से उस मरीज के बच पाने की संभावना कम हुई हैं। 
               जागरूकता से मौतों में आई कमी
यहां मेडिसन विशेषज्ञ डा.पी.सुथार का कहना है कि सर्पदंश के मामलों में अब ग्रामीण अचंल के लोगों में काफी जागरूकता आई है। यहां पर सर्पदंश की घटना के बाद सिविल अस्पताल में मरीज के बच जाने से गांव के लोग अब झाड़ फूंक के चक्कर में नहीं रहते हैं। उन्होने कहा कि ऐसे मरीजों को बगैर समय गवांए अस्पताल में भर्ति करा देने से ऐसे मरीजों को असमय मौत की गोद में जाने से बचा लिया जा रहा है। कलेक्टर हिमशिखर गुप्ता की पहल के बाद अब सर्पदंश के मरीज को उनके गांव में ही प्रारम्भिक उपचार मिल जाने से अनेक गंभीर मरीजों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिलेगा ।
           संजीवनी सेवा के स्टॅाफ को दिया सर्पदंश उपचार का प्रशिक्षण
    बीएमओ डा.जे मिंज ने बताया कि यहां 108 संजीवनी सेवा में पदस्थ महिला मेडिकल टेक्निश्यिन संगीता गुप्ता और पुरूष मेडिकल टेक्निशयन चंड़ामणी सिंग को एनटी स्नेक वेनम का उपयोग करने का समुचित प्रशिक्षण दे दिया गया है। इनके अलावा वाहन चालक अमित टोप्पो भी स्वास्थ्य सेवाओं का प्रशिक्षित होने से गम्भीर मरीजों को इनका लाभ मिल रहा है। डा.मिंज ने बताया कि सर्पदंश के मरीजों को आपात सेवा का लाभ देने के लिए 108 संजीवनी वाहन में 10 नग एनटी स्नेक वेनम उपलब्ध कराए गए हैं। इस दवा का उपयोग करने के बाद उन्हे पर्याप्त मात्रा में पुनः एनटी स्नेक वेनम उपलब्ध कराई जा रही है। डा.मिंज ने कहा कि बरसात के दिनों में इस अचंल में सर्पदंश की अधिक घटनाओं को देखते हुए यहां सिविल अस्पताल में सर्पदंश से पीड़ित मरीजों की संख्या में खासी वृध्दि हो जाती है।
                    सर्पदंश के बाद बचाए गए 27 मरीज
      यहां सिविल अस्पताल में इस वर्ष सर्पदंश की घटना के बाद 27 मरीजों को उपचार के बाद उन्हे मौत के चंगुल से बचाने में स्वास्थ्य अमला को सफलता मिली है। बीएमओ  डा. मिंज ने बताया कि यहां पर मार्च महिने में 2 मरीज, मई महिने में 9 मरीज, जून महिने में 14 मरीज  तथा जूलाई माह मे ं2 मरीजों को उपचार के बाद बचा लिया गया है। डा.मिंज का कहना था कि 108 संजीवनी वाहन में मरीजों को तत्काल उपचार की यह व्यवस्था काफी कारगर साबित हुई है। उन्होने कहा कि दूर दराज के गांवों में रहने वाले लोगों को सर्पदंश की घटना के बाद उनके घर पर ही जीवन रक्षक दवा से उपचार प्रारंभ हो जाने से गंभीर मरीजों को नया जीवन देने में आसानी को सकती है।

गुरुवार, 17 जुलाई 2014

कमजोर मानसून से बढ़ी सूखे की चिंता

पानी ब्यर्थ बह जाने के बाद खाली पड़ा गेरा नाला सिंचाई बांध की तस्वीर
बांध की लागत से दो गुना खर्च के बाद भी नहरों का काम अधूरा
हरित क्रांति लाने वाले सिंचाई बांध पानी के बगैर अनुपयोगी
 रमेश शर्मा /पत्थलगांव/      
     कमजोर मानसून को देख कर इस वर्ष किसानों को सूखे की चिंता सताने लगी है। बोनी का काम एक माह पिछड़ जाने के बाद अब किसानों की बेचैनी बढ़ते जा रही है। किसानों का कहना है कि आगे अच्छी बारिश होगी या नहीं इस बात को सोच कर वे रात को सो नहीं पा रहे हैं। मानसून के पहले बोए गए बीज खेतों में ही खराब होने की शिकायत मिल रही है। कई किसान अब दोबारा बोने के लिए बीज खरीद रहे हैं।
 सबसे बड़ी विडंबना यह है कि कम बारिश से चिंतित यहां के किसानों को करोड़ो रूपयों की लागत वाले सिंचाई बांधों से भी खरीफ फसल के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है। जल संसाधन विभाग व्दारा इस अचंल में हरित क्रांति लाने के लिए करोड़ों रूपये खर्च कर बनाए गए 8 सिंचाई बांधों में इस समय केवल दो बांध में ही पानी उपलब्ध है। शेष बांध यहां पर सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। यहां का गेरा नाला और घरजियाबथान सिंचाई बांध का पानी नहीं सहेज कर रखने से ये दोनो बांध खरीफ फसल में किसानों के लिए अनुपयोगी साबित हो रही हैं।
      पाकरगांव के किसान गणेशचन्द्र बेहरा का कहना था कि मानसून की देरी के बाद अब हल्की बुन्दा बान्दी से खेतों की मिट्टी भी गिली नहीं हो पा रही है। ऐसे में किसान सिंचाई के लिए बेहद बेकरार हो रहे हैं। इस अचंल में अनेक किसानों ने अपने खेतों में बीज भी डाल दिए हैं, लेकिन खेतों में पर्याप्त पानी का अभाव से अभी तक बीज अंकुरित नहीं हो पा रहे हैं।

     पत्थलगांव जल संसाधन विभाग व्दारा करोड़ों रूपयों की लागत से बनाए गए सिंचाई बांधों में पानी नहीं रहने से ये बांध किसानों के लिए बेकार साबित हो रहे हैं। यहां पर 17 करोड़ रू.की लागत वाला घरजियाबथान सिंचाई बांध का निर्माण में 23 करोड़ रू. से अधिक राशि व्यय करने के बाद इस बांध में 2 साल के बाद भी नहरों का निर्माण कार्य अधूरा पड़ा है। इसी तरह जल संसाधन विभाग का गेरा नाला सिंचाई बांध में भी पानी नहीं रहने से किसानों के लिए यह बांध अनुपयोगी साबित हो रहा है। लगभग 10 करोड़ की लागत से बनाया गया इस सिचांई बांध में भी नहरों का काम अधूरा रह जाने से हरित क्रांति लाने वाले ये बांध अब सफेद हाथी बन कर रह गए हैं। सबसे बड़ी विडमंना यह है कि करोड़ों रू.की लागत से बनाए गए इन बांधों का रख रखाव के लिए जल संसाधन विभाग ने फुटी कौड़ी का भी प्रावधान नहीं रखा है। गेरा नाला सिंचाई बांध में मुख्य गेट का व्दार खराब हो जाने के बाद इसका रख रखाव के लिए महज ढाई हजार रू.का आबंटन नहीं मिल पाने से इस बांध का पूरा पानी ब्यर्थ में बह गया था। छैः माह पहले गेरा नाला बांध से ब्यर्थ पानी बहने के संबंध में आस पास के किसानों ने जल संसाधन विभाग के अधिकारियों को शिकायत भी की थी। लेकिन पत्थलगांव जल संसाधन विभाग के अनुविभागीय अधिकारी के पास इस बांध का रख रखाव के नाम पर फुटी कौड़ी का भी आबंटन नहीं रहने से मुख्य गेट पर सुधार का काम नहीं हो पाया था। गेरा नाला बांध में अब 10 प्रतिशत पानी भी नहीं बच पाया है। गेरा नाला के समीप जामझोर के सरंपच नन्द देव साय ने बताया कि गेरा नाला सिंचाई बांध से आस पास के आधा दर्जन गांवों में खरीफ और रबि की फसल को सिंचाई सुविधा मुहैया कराने का दावा किया गया था। लेकिन यह दावा केवल कागजी बन कर रह गया है। नन्द देव ने बताया कि गेरा नाला सिंचाई बांध का काम पूर्ण करने का दावा तो किया गया है लेकिन यहां पर कोकियाखार तथा अन्य नहरों का काम आज भी अधूरा पड़ा है। उन्होने बताया इस समय आस पास के किसान अल्प वृष्टि से खासे परेशान हैं। यहां पर करोड़ों रू.की लागत का सिंचाई बांध और नहरों का जाल बिछ जाने के बाद भी पानी के अभाव में गेरा नाला बांध अनुपयोगी साबित हो रहा है।
         लापरवाह अधिकारी पर दंडात्मक कार्रवाई जरूरी
     बागबहार के भाजपा नेता आनंद शर्मा का कहना था कि महज 2 हजार रू.का आबंटन नहीं मिल पाने से गेरा नाला सिंचाई बांध का समूचा पानी ब्यर्थ बह जाना बेहद दुर्भाग्य की बात है। इसमें जल संसाधन विभाग के अधिकारी की लापरवाही अधिक झलकती है। ऐसे अधिकारियों के विरूध्द शासन को दंडात्मक कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होने कहा कि गेरा नाला सिंचाई बांध का पानी यदि ब्यथ नहीं बहता तो इस पानी से जामझोर ,कोकियाखार आदि गांव के सैकड़ों एकड़ भूमि में अल्पवृष्टि के बाद भी खरीफ की फसल का लाभ मिल सकता था। उन्होने कहा कि गेरा नाला सिंचाई बांध की नहरों का निर्माण पर करोड़ों रू.का व्यय करने के बाद आज भी कोकियाखार क्षेत्र में नहरों का काम अधूरा पड़ा है।श्री शर्मा ने कहा कि गेरा नाला सिंचाई बांध का निर्माण कार्य के दस्तावेजों की जांच करने से यहां पर करोड़ों रू.की वित्तिय अनियमितता का खुलासा हो सकता है।
गेरा नाला सिंचाई बांध का मुख्य गेट रख रखाव के अभाव में बह गया पानी 
          सिंचाई बांधों का रख रखाव में आबंटन की कमी
   यहां जल संसाधन विभाग के सहायक यंत्री एसके धमिजा ने बताया कि यहां बनाए गए सिंचाई बांधों का रख रखाव के लिए आंबटन का प्रावधान नहीं होने से उन्हेa काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। श्री धमिजा ने बताया कि यहां के 8 सिंचाई बांध में केवल दो बांध में ही खरीफ फसल के लिए सिंचाई का पानी उपलब्ध है। उन्होने बताया कि यहां पर किसी भी सिंचाई बांध में चौकीदार रखने का प्रावधान नहीं होने से इन दिनो सिंचाई के लिए पानी का गेट भी नहीं खुल पा रहा है। सिंचाई बांध के आस पास के किसान स्वयं देखरेख करने से यहां पर मौजूदा हालात को अच्छा नहीं कहा जा सकता है।


बुधवार, 9 जुलाई 2014

मानसून की बेरुखी से किसान मायूस

अंचल में सूखे के हालात 
50 फीसदी से भी कम बारिश
पत्थलगांव/रमेश शर्मा
        इन दिनो कमजोर मानसून के कारण अभी भी किसानों के खेत सूखे पड़े हैं। बीते वर्ष की तूलना में इस वर्ष 200 मिमी.वर्षा कम होने से सूखे के हालात बनते जा रहे हैं। बारिश के अभाव में धान के खेतों में बड़ी बड़ी दरार दिखने लगी हैं। धान की फसल को बर्बादी के कगार पर देख कर किसान मायूस हो गए हैं।
     पिछले दिनो दो बार हुई हल्की बूंदा बांदी के बाद 50 फीसदी से अधिक किसानों ने खेतों में बोनी का काम कर डाला है। कुछ किसानों ने तो यहां मानसून की दस्तक से पहले ही अपने सूखे खेतों में बोवाई का काम पूरा कर लिया था। अब मानसून की दगाबाजी के कारण इन किसानों के बीज खेतों में ही खराब होने लगे हैं। खेतों में दरार देख कर कई किसानों को कर्ज के भुगतान की चिंता बढ़ गई है।
     पत्थलगांव तहसील में अब तक 173.0 मिमी वर्षा का रिकार्ड है, बीते वर्ष इसी अवधि में यहां 371.6 मिमी.वर्षा दर्ज की गई थी। इस साल अल्पवृष्टि के चलते पिछले वर्ष की औसत वर्षा से 50 फीसदी से भी कम बारिश है। विलंब से शुरू हुई मानसून के बाद इस अचंल के किसानों ने आनन फानन में अपना खेती किसानी का काम शुरू करके खेतों में बीज डाल दिए थे। इन किसानों के खेतों में धान के बीज अंकूरित तो हो गए हैं लेकिन सूखे के कारण ये पौधे अब दम तोड़ने लगे हैं। मानसून की दगाबाजी से किसानों की उम्मीद पर ही पानी फिर गया है।
      पाकरगांव के किसान गणेशचन्द्र बेहरा  तिलडेगा के मनोज अम्बस्थ , धनसाय, बीरिक साय तथा पुरानी बस्ती के किसान बाबा महाराज का कहना है कि इस बार  मानसून साथ नहीं देने के कारण यहां खेती किसानी का काम एक पखवाड़ा पिछड़ गया है। अल्पवृष्टि के चलते यहां पर केवल टयूबवेल वाले किसानों की ही फसल ठीक है, लेकिन वर्षा आधारित किसानों की हालत खराब है। इन दिनों अचंल के ज्यादातर किसान अपने खेतों में फसल की बर्बादी को देख कर मायूस हो गए हैं।
  दरअसल इस अचंल में ज्यादातर किसानों के पास खेतों में सिंचाई करने के लिए टयूबवेल,सिंचाई नहर तथा अन्य साधन नहीं होने के कारण उन्हें इस वक्त मानसून की दगाबाजी काफी भारी पड़ रही है। इस अचंल के किसानों का कहना है कि अब यदि मूसलाधार बारिश होगी तो भी फसल का उत्पादन प्रभावित होगा।
            मूसलधार बारिश की जरूरत 
     यहां घरजियाबथान के किसान डीआर यादव का कहना था कि यहां पर काफी विलंब से पहुंचा मानसून के बाद अब तक हुई बारिश से खेतों की जमीन भी गीली नहीं हो पाई है। इस वक्त धान की बेहतर फसल के लिए मूसलाधार बारिश का होना बेहद जरूरी हे। मानसून की दस्तक देते ही जिन किसानों ने खेतों में बोनी कर दी थी वहां अब पानी के बिना बीज खराब हो रहे हैं। यदि ऐसी ही स्थिति रही तो किसानों को दोबारा बुवाई करनी पड़ सकती है।  मानसून की दगाबाजी को देख कर कृषि विभाग का अमला भी खामोश हो गया है।
   यहां वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी श्रीमती अनिता एक्का का कहना है कि बारिश नहीं होने से किसानों की चिंता बढ़ना स्वाभाविक बात है। उन्होंने कहा कि अर्ली वेरायटी के बीज का उपयोग करने वालों को नुकसान की कम संभावना है।