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सलखिया के गौशाला की बदल गई रंगत

गौवध रोकने की दिशा में सार्थक पहल
पत्थलगांव/
गौवध रोकने की दिशा में यंहा पर सलखिया स्थित गुरुकुल वैदिक आश्रम ने एक मिसाल कायम की है। इस आश्रम में पश्चिम बंगाल के बूचड़खानों में गौवध के लिए भेजी गई 200 से अधिक गायों को वापस लाकर उनका पालन पोषण किया जा रहा है। सलखिया की बृहद गौशाला के मवेशियों के माध्यम से अचंल के किसानों को भी उनके खेती किसानी के कामकाज में सहयोग प्रदान किया जा रहा है। यहंा के अध्यक्ष स्वामी रामानंद का कहना है कि गौवध रोकने के लिए सभी का सहयोग जरूरी है।
पत्थलगांव के समीप सलखिया गांव में अचंल के वनवासियों को वैदिक शिक्षा और वृध्दाश्रम के माध्यम से बुजुर्गो की बेहतर देखरेख के साथ उन्हे सम्मानजनक आशियाना उपलब्ध कराया गया है।गुरुकुल वैदिक आश्रम का सचंालन करने वाली इस समाजसेवी संस्था ने गरीब तबके के लिए परोपकार के काम करके अलग पहचान कायम की है। इस संस्था के अध्यक्ष स्वामी रामानंद सरस्वती ने बताया कि देश के विभिन्न हिस्सों से गौवध के लिए भेजी गई 200 से अधिक गायों को सलखिया आश्रम में रख कर उनकी सेवा की जा रही है। सलखिया की इस गौशाला में एकत्रित दूध दही को आश्रम में रह कर विद्याध्यन करने वाले गरीब तबका के बच्चों को वितरण कर उन्हे तंदुरुस्त बनाने में मदद दी जा रही है। स्वामी ने बताया कि गौवध के कृत्य को रोकने के लिए केवल बयानबाजी पर्याप्त नहीं है, बल्कि इस काम में सभी को गाय पालन के काम हेतु प्रेरित करने की जरूरत है।उन्होने बताया कि आदिवासी अचंल में किसानों को अपनी खेती के काम हेतु महंगे बैल खरीदने पड़ते हैं। यदि गाय पालन के काम को बढ़ावा दिया जाए तो किसानों की इस समस्या से राहत दी जा सकती है। स्वामी रामानंद ने कहा कि गाय पालन से जैविक खाद तथा बिजली का भी लाभ लिया जा सकता है।
उन्होने बताया कि इस अचंल के प्रमुख समाजसेवी इन्द्रपाल सिंह भटिया का सहयोग मिल जाने के बाद सलखिया गुरुकुल वैदिक आश्रम में गरीब तबका के सैकड़ो बच्चांे को भी शिक्षा के माध्यम से आत्म निर्भर बनाने की पहल की गई है।यहंा वृध्दाश्रम और वृहद गौशाला के माध्यम से आसपास के ग्रामवासियों को सहयोग देने का प्रयास किया गया है। पत्थलगांव के समीप सलखिया आश्रम में गरीब तबका के बच्चों को विभिन्न ट्रेडो के तहत कृषि,वेल्डिंग,स्क्रीन प्रिंटिग,कारपेंटरी के काम का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस आश्रम के 100 बच्चों को इन दिनों बैदिक संस्कृति के साथ आसन, व्यायाम, प्राणायाम विद्या में भी पारंगत किया जा रहा है।स्वामी रामानंद का कहना है कि बच्चों को बचपन से ही वैदिक शिक्षा के साथ शाररिक उन्नति पर ध्यान देने से ये बच्चे आगे चल कर स्वस्थ्य जीवन व्यतित कर सकते हैं।उन्होने बताया कि इस आश्रम में प्राचीन रूढ़ियों को तोड़ कर अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग के बालकों को वैदिक शिक्षा का पूरा ज्ञान देकर उन्हे आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
रमेश शर्मा

फोटो/ पश्चिम बगंाल के बूचड़खानों को भेजी गई गायों का सलखिया में पालन पोषण

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