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शनिवार, 11 अगस्त 2012

गाजर घास फैला रही बीमारी, किसानों को परेशानी



गाजर घास के साथ
पत्थलगांव/ रमेश शर्मा/ 
 जशपुर जिले में बारिश के दिनों में जगह जगह उग गई गाजर घास लोगों के लिए परेषानी का सबब बन गई है।घर के आस पास आबादी क्षेत्र के अलावा खेतों में भी गाजर घास बहुतायत में देखी जा रही है। फसल के बीच में स्वतः उगने वाली गाजर घास से फसल प्रभावित होने पर किसानों को इससे अच्छी खासी परेषानी का सामना करना पड़ रहा है।
  शहर में जगह जगह उग चुकी गाजर घास की सफाई के लिए नगर पंचायत ने अभी तक कोई पहल नहीं की है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि जिस क्षेत्र में गाजर घास अधिक मात्रा में उग चुकी है वहां रहने वालों को चर्म रोग की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उदयानन अधीक्षक प्रकाश सिंह भदौरिया का कहना है कि गाजर घास को उखाड़ कर गडडे में दबा देने से ही राहत मिल सकती है। उन्होने कहा कि यह घास पषुओं के साथ साथ मनुष्य के लिए भी नुकसानदायक है। शहर के ज्यादातर मुहल्लों में इन दिनो गाजर घास का प्रकोप फैल गया है। गलियों में सड़क के किनारे तथा घरों के आस पास काफी बड़ी तादाद में गाजर घास उग जाने से लोगों को आने जाने में भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

  शहर में जशपुर मुख्य मार्ग के किनारे, सिंचाई कालोनी, रेस्ट हाउस मुहल्ला, बिलाईटांगर तथा वार्ड क्रमांक 7 और 8 में गाजर घास का सबसे ज्यादा प्रकोप देखा जा रहा है। बेलघाटी मुहल्ला में रहने वाले गुरूचरण सिंह भाटिया ने बताया कि उनके मुहल्ले में घरों के आसपास तथा सड़क के किनारे गाजर घास उग जाने से लोगों को काफी परेषानी का सामना करना पड़ रहा है।यहंा के किसान गणेशचन्द्र बेहरा ने बताया कि गाजर घास फसल के बीच में उग जाने से फसल की पैदावार में भी कमी आती है।उन्होने बताया कि खेतों में काम करने वाले मजदूर गाजर घास के सम्पर्क में आने से उनके व्दारा चर्म रोग की शिकायत की जाती है।श्री बेहरा ने बताया कि गाजर घास के बीज काफी सुक्ष्म होने के कारण स्वतः उग जाते हैं। उन्होने बताया कि गाजर घास का फूल आने से पहले इस उखाड़ कर नष्ट करने से ही थोड़ी राहत मिल पाती हैं।
 सिविल अस्पताल के चिकित्सक बसंत सिंह का कहना है कि गाजर घास के पौधों से बचकर रहना चाहिए। इसके सम्पर्क में आने से एलर्जी, एक्जिमा जैसे रोगों की सम्भावना बनी रहती है। उन्होने कहा कि बरसात के दिनों में यह वनस्पति घर के आस पास तथा खेत खलिहानों में काफी बड़ी तादाद में स्वतः उग जाती है।
     फूल लगने से पहले नष्ट करें
  वन मंडल अधिकारी चन्द्रषेखर तिवारी ने बताया कि वनस्पति विज्ञान में गाजर घास का नाम पार्थेनियम है। मगर क्षेत्रिय भाषा में इसे गाजर घास कहा जाता है। इस पौधे का मूल स्थान मैक्सिको वेस्टइंडिज तथा मध्य व उत्तरी अमेरिका माना जाता है। इस घास में फूल लगने से पहले ही इसे नष्ट करके त्वचा के रोगों से बचा जा सकता है। गाजर घास का प्रत्येक पौधा पांच हजार सुक्ष्म बीज पैदा कर सकता है। उन्होने बताया कि भारत में पहली बार गाजर घास महाराष्ट्र के पूर्वी क्षेत्र में 1964 में देखने को मिली थी। ऐसा माना जाता है कि अमेरिका,कनाडा से आयातित गेंहू के साथ इसका आना हुआ है।


गुरुवार, 9 अगस्त 2012

महँगे और आकर्षक पौधों के प्रति बढ़ता क्रेज

रंग बिरंगे फूलों की दुकान
पत्थलगांव/ रमेश शर्मा
बरसात के मौसम में घरों के आसपास विभिन्न फूल तथा अन्य शो पीस पौधे रोपने के लिए उपयुक्त मौसम होने के कारण इन दिनों शहर में रंग बिरंगे फूल एवं विभिन्न प्रजाति के पौधे बेचने वालों की कई जगह दुकान सजी हुई हैं।
    इन दुकानों में तरह तरह के पौधे देखने के बाद आमजन का पौधे रोपने में लगाव बढ़ता जा रहा है। शहर में कई प्रकृतिप्रेमी अपने घरों की छत पर गमलों में पौधे रोप कर पर्यावरण को बढ़ावा दे रहे हैं। रंग बिरंगे फूलों की साज सज्जा से घर भी आकर्षक लगने लगे हैं। अपने घरों की साज सज्जा के लिए ज्यादातर लोगों ने फूल और शो पीस के पौधों को अपनी पहली पसंद बना लिया है।
     शहर में इन दिनों केरल, आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र जैसे दूरस्थ राज्यों से लाए गए विभिन्न प्रजाति के पौधे महंगे होने के बाद भी यहंा पर इनकी जमकर बिक्री हो रही है। इन दुकानों में सजे हुए फलदार,फूलदार एवं छायादार पौधे यहंा के लोगों को काफी आकर्षित कर रहे हैं। यंहा पर पंचायती धर्मशाला के आस पास पौधे बेचने वालों की कई दुकान लगी हुई हैं। इन सभी दुकानों में इन दिनों ग्राहको की भीड़ लगी रहती है। जेपी होटल के प्रांगण में भुवनेश्‍वर उड़ीसा से पौधे विक्रय करने वाला अनिल सिंह ने बताया कि वे पिछले एक दशक से पौधे बेचने एवं घरों की साज सज्जा करने का काम कर रहा है। इस विक्रेता ने बताया कि कई घरों में बागवानी तैयार करने का काम किया है।इस विक्रेता के पास 200 से अधिक प्रकार के पौधों का सगं्रह है। इस विक्रेता का कहना था कि वह लोगों की पसंद के अनुसार भांति भांति के पौधे लेकर आता है तथा इसके माध्यम से हरियाली फैलाने का सन्देश भी देता है। श्री सिंह ने बताया कि पिछले साल जिस क्रिसमस ट्री को 200 रू. प्रति नग में बेच रहा था वह पौधा इस वर्ष 350 रू.में बेचा जा रहा है।
                      पौधे लगाने में बढ़ा रूझान 
भुवनेश्‍वर  का पौधे विक्रेता 
 यहां पर पर्यावरण एवं प्रकृति प्रेमी पप्पी भाटिया ने बताया कि विभिन्न सजावटी व फूलदार पौधों से घर सजाने में आम लोगों का रूझान काफी बढ़ा है।घर का प्रांगण और छत पर गमलों में पौधे मुस्काराते हुए मन को सुकून देते हैं।श्री भाटिया ने बताया कि उनके पास विभिन्न प्रजाति के गुलाब के दो दर्जन से अधिक तथा अन्य रंग बिरंगे फूल वाले पौधों का अच्छा खासा संग्रह है,  इसके बाद भी वे प्रति वर्ष नए फूलवाले पौधे अवष्य खरीदते हैं।उन्होने कहा कि इन पौधों की देखरेख करने में काफी मेहनत करनी पड़ती है। मगर उनके घर की हरियाली किसी आगंतुक को रास आती है तो मन प्रसन्न हो जाता है। यहंा के होटल व्यवसायी महाबीर अग्रवाल ने बताया कि उन्होने गुरबारूगोड़ा काॅलोनी में नया घर बनाया है। इसमें हरियाली को बढ़ावा देने के लिए अलग से भू खंड छोड़ा गया था। इस खाली जगह पर विभिन्न प्रकार के फूलदार और छायादार पौधे रोप देने से घर भी आकर्षक दिखने लगा है।उन्होने कहा कि बरसात का मौसम पौधे रोपने के लिए काफी उपयुक्त है। इन दिनों रोपे गए नारियल के पौधे भी अब काफी आकर्षक लगने लगे हैं।
 रमेश शर्मा

खेल खेल में पढ़ाई : मासूमों को रास आई

 पत्थलगांव/ रमेश शर्मा/
    छत्तीसगढ़ के स्कूलों में नन्हे बच्चों को खेल के साथ पढ़ाई का प्रयोग बेहद कारगर साबित हो रहा है। नन्हे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए नर्सरी तथा बाल मंदिरों में खिलौने तथा प्रेरणादायी चित्र के माध्यम से पढ़ाया जा रहा है।छोटे बच्चों को खेल खेल में अक्षर ज्ञान तथा अन्य उपयोगी शिक्षा  देने वाले स्कूल काफी रास आ रहे हैं।
   खेल खेल में छोटे बच्चे गिनती और शरीर के विभिन्न अंग के नाम को आसानी से याद कर ले रहे हैं। बच्चों को इन स्कूलों में पढ़ाई के दौरान गीत संगीत की भी शिक्षा दी जाती है। अपने हमउम्र सहपाठियों के साथ कक्षा में खेलकूद करना और शैतानी करने की छुट के चलते बच्चों का स्कूल में देखते ही देखते समय व्यतीत हो जाता है।छोटे बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि प्रारम्भिक दौर में यह पढ़ाई बेहद लाभप्रद है।स्कूल में जाकर ये नन्हे बच्चे अपना टिफिन ,पानी की बाटल और स्कूल का बस्ता के प्रति सजग रहने लगे हैं।

    इन स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों का कहना है कि जस्ट प्ले एंड लर्न पदयति की शिक्षा नन्हे बच्चों के लिए जितनी सहज है उसके विपरित शिक्षकों के लिए यह बेहद चुनौतीभरा काम रहता है। ठीक से अपनी बात को व्यक्त तक नहीं कर पाने वाले नन्हे बच्चों की भाषा को भी समझ कर उन्हे खुश रखना बेहद कठिन काम होता है।मगर नन्हे बच्चों की मीठी बोली के बाद कोई भी कठिन काम आसानी से पूरा हो जाता हैं। नन्हे बच्चों के शिक्षकों का कहना था कि प्रारंभिक काल में शिक्षा के प्रति बच्चों को प्रेरित करना हाई स्कूल में पढ़ाने से भी ज्यादा चुनौती भरा काम रहता है। एक शिक्षिका ने बताया कि नन्हे बच्चों की शरारत तथा उनके अजीबो गरीब सवाल के बीच उन्हे कभी भी अपना काम कठिन नहीं लगता है।