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बुधवार, 6 मार्च 2013

अब वृक्ष मंदिर और जल मंदिर बनाने की जरूरत- रमेश भाई



वर्षा का पानी संरक्षण से ही इस विकराल समस्या के उपाय
पत्थलगांव/छत्तीसगढ़/6 मार्च/  
    रमेश शर्मा
   पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और प्रकृति से बेवजह छेड़छाड़ का दुष्परिणाम के रूप में हमें पानी की विकराल समस्या का सामना करना पड़ रहा है। इस समस्या से अपनी आने वाली पीढ़ी को बचाने के लिए हमें अभी से ठोस उपाय करने की जरूरत है। इस कड़ी में सबसे पहले वर्षा के जल का संग्रहण, छोटे डेम, तालाब और कुएँ बनाने की पहल करनी होगी। तभी हम अपना भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं। उक्त बातें देश के विख्यात भागवत कथा वाचक एवं राज्य अतिथि रमेश भाई ओझा ने यहंा चर्चा के दौरान कही। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम वृक्ष मंदिर और जल मंदिर बनाएं।
       श्री ओझा ने कहा कि छत्तीसगढ़ के अनेक जिलों में गर्मी की शुरुआत से पहले ही पानी की विकराल समस्या बढ़ने लगी हैं। उन्होने कहा कि जशपुर रायगढ़ और सरगुजा सहित अनेक जिले में पानी को लेकर काफी भयावह स्थिति बन जाती है। यहां हेंडपम्प तथा कुओं में प्रति वर्ष 10 मीटर से भी अधिक जल स्रोतों में गिरावट काफी चिन्ता की बात हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश में पानी की समस्या का निराकरण के लिए यहंा वर्षा का जल को संरक्षण करने के काम पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके अभाव में प्रति वर्ष नदियों की खूबसूरती कम होकर वहंा अब पानी की पतली धारा ही दिखाई पड़ रही है।यह स्थिति हमारे सुखमय जीवन में बाधा उत्पन्न करने के संकेत हैं। श्री ओझा ने कहा कि जल सरंक्षण के काम में सरकारी तंत्र के अलावा सामाजिक स्तर पर भी ईमानदारी के साथ प्रयास करने की जरूरत है। इस काम को कर लेने से छत्तीसगढ़ पूरे देश में एक मिसाल बन सकता है। उन्हांेने कहा कि अब बड़े बांध बनाने के बजाए सरकार को तालाब और छोटे डेम के कार्यो को प्राथमिकता देनी चाहिए। गांव गांव में तालाबों का निर्माण में यदि गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाता है तो इसके अच्छे परिणाम सामने आएंगे। श्री ओझा का कहना था कि हमें पूजा पाठ के लिए कांक्रीट के मंदिर बनाने के बजाए जल मंदिर ;तालाब तथा वनों के मंदिर, वृक्षारोपण बनाने पर ठोस पहल करनी होगी। इसके बगैर विकास की बातें केवल बेमानी है। श्री ओझा ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कम से कम 6 पेड़ों का उपयोग करता है। इसलिए हर आदमी को अपना ऋण चुकता करने के लिए कम से कम 6 पौधे रोपकर उनका सरंक्षण करना चाहिए। उन्होंने बताया कि पिछले दिनो उनके साथ साधु संतों का एक प्रतिनिधि मंडल ने दिल्ली पहुंच कर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ भेंट कर गंगा, यमुना सहित अन्य नदियों को अविरल बहने की दिषा में उपाय करने की बात पर जोर दिया था। इन नदियों में गंदगी तथा मिटटी का कटाव होने से बदहाल स्थिति का ब्यौरा दिया गया था। साधु संतों के प्रतिनिधि मंडल के ध्यानाकर्षण के बाद गंगा नदी को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में मान लिया गया है। लेकिन नदियों का संरक्षण के लिए अभी तक सार्थक पहल नहीं हो पाई है। इसके लिए सरकारी तंत्र के अलावा सामाजिक स्तर पर भी काम करने की आवश्‍यकता है। ऐसा करने के बाद ही हम पर्यावरण संरक्षण के लिए ठोस उपाय कर पाएंगे।

        हिन्दू धर्म में खुलापन होने से विदेशियों का रूझान बढ़ा
 श्री ओझा ने कहा कि भारत में धर्म के प्रति खुलापन होने के कारण विदेशों में भी भागवत और राम कथा के प्रति रूझान बढ़ा है। विदेशों में धर्म विशेष पर ध्यान केन्द्रित कर देने से अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र में अब 45 प्रतिशत युवाओं की गीता, भागवत में रूचि बढ़ रही है।उन्होने कहा कि विदेशों में भी भागवत कथा सुनने वालों की भीड़ उमड़ने लगी है। उन्होंने कहा कि फिजी के अलावा यूरोप, स्वीटजरलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका में भी अब हिन्दू धर्म के प्राचीन ग्रन्थों का अध्ययन कर उसका अनुसरण किया जा रहा है।श्री ओझा ने कहा कि विष्व में पर्यावरण सन्तुलन बिगडने के बाद बड़े बड़े वैज्ञानिकों ने हमारे प्रचीन ग्रन्थों में वृक्ष,पर्वत और नदियों की पूजा अर्चना की बातों का महत्व को समझा है। अब वृक्षारोपण, नदियों और प्रकृति की सुरक्षा के लिए अलग अलग योजनाएं बनाई जाने लगी हैं।यही बातें सैकड़ों वर्ष पहले हमारे ग्रंथों में लिखी गई है। नदियों की साफ सफाई, वनों की सुरक्षा जैसे कार्यो से ही हम जल स्तर की गिरावट पर काबू पा सकते हैं। इन बातों को पर्यावरण संरक्षण के नाम पर पूरे विष्व ने स्वीकार कर लिया है।
               देश की बागडोर के लिए नरेन्द्र मोदी उपयुक्त
  श्री ओझा ने एक सवाल के जवाब में कहा कि जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी को देश की बागडोर सौंपने में देरी हुई थी वह देरी अब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए नहीं होनी चाहिए। श्री मोदी ने अपनी क्षमता से जिस तरह गुजरात में नर्मदा नदी का कायाकल्प करके विकास को नई दिषा दी है उस क्षमता का लाभ पूरे राष्ट्र को मिलना चाहिए। उन्हांेने कहा कि भारत अब गरीब देश नहीं है। यंहा का केवल मैनेजमैंट गरीब है।इसके लिए अनुषासित और विकास की दृढ़ इच्छाशक्ति रखने वाले व्यक्ति को देश की बागडोर सौंपनी होगी।श्री ओझा ने वनवासियों का धर्मान्तरण पर भी चिन्ता व्यक्त की। उन्होने कहा कि भय और लालच से धर्मान्तरण करने के बजाए यहंा इच्छे इंसान बनाने की जरूरत है।इसके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में और काम करने की जरूरत है।    

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