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रविवार, 1 जनवरी 2012

जिद करो और दुनिया बदलो का सकंल्प के बाद


खारडोढ़ी गांव में श्रीमती अनिता यादव बनी प्रेरणा की मिसाल
       खारडोढ़ी की महिलाओं ने बजंर भूमि पर फैला दी हरियाली 
पत्थलगांव/   रमेश शर्मा
खारडोढ़ी गांव की उबड़ खाबड़ और पथरीली जमीन पर नौ साल पहले यहंा की महिलाओं का स्वसहायता समूह व्दारा रोपे गए पौधे अब सघन जगंल का रूप ले चुके हैं। लगभग 25 एकड़ क्षेत्र में फैले इन दो जगंलों की देख रेख का काम गांव के ही लोग मिलजुल कर करते हैं।सबसे दिलचस्प बात यह है कि ग्रामीण महिलाओं का स्वसहायता समूह की समझाईश के बाद प्रत्येक ग्रामीण साग सब्जी की उपज लेकर नगद लाभ कमाने लगे हैं।यहंा के ग्रामीण अपनी बाड़ी में ही केंचवा खाद बना कर विभिन्न साग सब्जी का अधिक उत्पादन ले रहे हैं।गांव में जगंल की कमी दूर हो जाने के बाद यहंा जलाउ लकड़ी की किल्लत दूर हो गई है।जगंल की सूखी टहनियों की बदौलत चुल्हा चौका का काम आसानी से होने लगा है।
पत्थलगांव विकासखंड अन्तर्गत ग्राम खारडोढ़ी के आसपास बजंर और पथरीली भूमि होने के कारण यहंा की ग्रामीण महिलाओं को जलाउ लकड़ी लेने के लिए 25 से 30 कि.मी. दूर सिसरिंगा और तेजपुर जगंल जाना पड़ता था। प्रति दिन जलाउ लकड़ी की समस्या से जूझने के कारण यहंा की महिलाऐं दूसरा काम के बारे में सोच भी नहीं पाती थी। इस गांव के लोगों की परेशानी के बारे में जब आदिवासी विकास कार्यक्रम  आई फेड के अधिकारियों को पता चला तो उन्होने गांव में पहंुच कर यहंा की महिलाओं में आत्म विश्वास जगाया था। आदिवासी विकास कार्यक्रम के तत्कालीन अधिकारी संदीप शर्मा, अशोक जायसवाल ने यहंा की ग्रामीण महिलाओं के मोंगरा समूह, चम्पा समूह और ध्रुव नामक स्वसहायता समूह गठित कर उन्हे वृक्षारोपण, बाड़ी विकास, मुर्गी पालन जैसे छोटे छोटे काम के प्रति आकर्षित किया था। यहंा के महिलाओं के तीन अलग अलग समूह बना कर उन्हे सुखरापारा सेन्ट्रल बैंक से कर्ज भी दिलाया गया था। जिसे यहंा की ग्रामीण महिलाओं ने अब पूरा चूकता कर दिया है। यहं की महिलाओं का कहना है कि अपने काम के प्रति रूचि और लगन से उन्हे सभी कार्यो में अपार सफलता मिलती रही है।
मोंगरा समूह की अध्यक्ष श्रीमती अनिता यादव ने बताया कि सबसे पहले वर्ष 2002 में उन्होने खारडोढ़ी का खेरखेरी पारा और जुनापारा की पथरीली भूमि में वृक्षारोपण किया था। खेरखेरीपारा की भूमि के समीप बरसाती नाला होने से यहंा रोपे गए विभिन्न प्रजाति के पौधे जल्द ही हरियाली में बदलने लगे थे। मौजूदा समय में यहंा पर लगभग 20 एकड़ बजंर भूमि ने हरियाली की चादर ओढ़ ली है। यहंा जुनापारा और खेरखेरीपारा के दो अलग अलग जगंल की देख रेख करने वाले चौकीदारों के लिए गांव के लोग आपस में अनाज इकटठा कर उन्हे पारिश्रमिक दे रहे हैं। यहंा के ग्रामीण भी इन जगंलों को सुरक्षित रखने में अपना समय देते हैं। यहंा पर मिलने वाला मवेशिओं का चारा को ग्रामीण मिल बांट कर उपयोग कर लेते हैं। इस गांव के दोनो हरे भरे जगंल पड़ोस के गांव वालों के लिए एक मिशाल बन गए हैं।  
                   कलेक्टर ने रोपा था काजू का पौधा
खारडोढ़ी की महिलाओं का जज्बा के बारे में जशपुर के तत्कालीन कलेक्टर दर्गेश मिश्रा को पता चला तो उन्होने भी गांव पहुंच कर यहंा वृक्षारोपण तथा अन्य कार्यो का जायजा लिया। खारडोढ़ी गांव में कलेक्टर श्री मिश्रा ने भी अपनी उपस्थिति को यादगार बनाने के लिए यहंा खेरखेरी पारा की बजंर भूमि में काजू का पौधा रोपा था। यह छोटा सा पौघा अब बड़ा पेड़ बन कर फलने फुलने लगा है।गांव के लोग काजू के पेड़ की देखभाल करते रहते हैं।
खारडोढ़ी की ग्रामीण महिलाओं में सबसे पहले मोंगरा समूह का गठन कर श्रीमती अनिता यादव को इसका अध्यक्ष बनाया गया था। इस महिला के कामकाज से प्रेरित होकर गांव में महिलाओं के दो और समूह का गठन किया गया। इन तीन समूह की लगभग 50 महिलाओं ने  नौ वर्षो में पूरे गांव की तस्वीर बदल डाली है। महिला समूह व्दारा रोपे गए पौधे बड़े हो जाने के बाद यहंा मवेशियों के लिए चारा और पेड़ो की टहनियों से जलाउ लकड़ी की व्यवस्था आसानी से हो जा रही है। श्रीमती अनिता ने बताया कि खरडोढ़ी गांव की अलग पहचान बनाने में उनके सामने कई बार कठिनाई भी आई लेकिन  यहां की महिला सहयोगी रमीला बाई, प्रेमवती, पन्ना बाई जानकी बाई, पुष्पा भगत के अलावा राम साय,महादेव जैसे कई ग्रामवासियों का भरपूर सहयोग मिल जाने से उनकी सभी परेशानियंा देखते ही देखते दूर हो जाती थी। गांव के लोगों ने आपस में मिलजुल कर काम करने की अब आदत बना ली है। इसी की बदौलत खारडोढ़ी गांव के लोग अब खुशहाल रहने लगे हैं। उन्हे शासन से किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिलने के बाद भी वे अपना कामकाज सुचारू ढंग से कर रही हैं।

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