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पंड्रापाठ क्षेत्र में आलू की फसल |
खेतों में खराब आलू की फसल से किसान मायूस
पत्थलगांव/ रमेश शर्मा
नियत समय पर आलू की फसल खेतों से बाहर नहीं निकलने
के कारण अब किसानों को आधी से भी कम फसल पर ही सन्तोष करना पड़ रहा है। कई किसानों को
इस बार खरीफ की आलू फसल ने कर्ज के नीचे डूबा दिया है। पंड्रापाठ क्षेत्र में इस बार
खरीफ के मौसम में बारिश के कारण कमजोर आलू फसल के खरीदने में बाहर के व्यवसायी भी कतराने
लगे हैं।
बगीचा तहसील का पंड्रापाठ क्षेत्र में 13 ग्राम पंचायत
के दो दर्जन से अधिक गांवों के सैकड़ों किसानों ने खरीफ के मौसम वाली आलू की पैदावार
ली है। बारिश की वजह से 60 से 70 दिन के भीतर नीकलने वाली आलू की फसल
की 20,25 दिन विलंब
से कोड़ाई होने के चलते लगभग 60 प्रतिशत नुकसान की सम्भावना व्यक्त
की जा रही है। खेतों से फसल निकालने में देरी हो जाने की वजह यह फसल खेतों में ही खराब
हो गई है।
इस बार प्राकृतिक विपदा ने यहां के सैकड़ों किसानों
को कर्ज में डूबा दिया है। पंड्रापाठ के घोरडेगा गांव में लगभग 55 एकड़ भूमि पर
आलू की फसल लेने वाले किसान अषोक यादव ने बताया कि लगातार हो रही बारिश के चलते वे
अपने खेतों में तैयार हो चुकी आलू की फसल को समय पर नहीं निकाल पाए ।आलू की फसल को
20 से 25 दिन विलंब
के साथ निकालने पर लगभग 60 फीसदी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस किसान ने बताया
कि यहां पर खरीफ के मौसम में आलू की फसल 60 से 70 दिन के भीतर
तैयार हो जाती है। इस फसल को नियत समय पर खेतों से नहीं निकालने पर मिटटी
में ही आलू की फसल खराब होने लगती है। अषोक यादव का कहना था कि पिछले पखवाड़े लगातार
बारिश होने से वे आलू की फसल को नियत समय पर खेतों से बाहर नहीं निकाल पाए हैं। देरी
हो जाने के बाद यह फसल मिटटी की नमी से खेतों में ही गलने लगी है।
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पंड्रापाठ क्षेत्र में आलू की फसल |
पंड्रापाठ क्षेत्र में ही रौनी के किसान गौरी
गुप्ता का कहना था कि अधिक बारिश के चलते यहां पर आलू की फसल में पहले फंगस का रोग
लग गया था। आलू के पौधों में इस रोग का उपचार करने के नाम पर भारी भरकम खर्च करना पड़ा
था। इसके बाद भी आलू का रोग से पौधे का तना में गलन शुरू होकर डंठल भी प्रभावित हुई
है। इस किसान का कहना था कि यहंा पर बे मौसम की बरसात ने किसानों की कमर तोड़ दी है।
यहंा देवडाड़, मुढ़ी, सुलेषा, महनई, छिछली सहित
13 ग्राम पंचायतों
के 30 से अधिक आश्रित
गांवों में आलू फसल का अलग ही नजारा दिखाई पड़ रहा था । यहंा पर किसानों के खेतों में
आलू की अच्छी पैदावार होने के बाद भी उन्हे इसका लाभ से वंचित रहना पड़ रहा है।
पिछले कई वर्षो से आलू की पैदावार लेने वाला ग्राम
घोरडेगा का किसान अषोक यादव का कहना था कि खाद और बीजों में महंगाई का प्रभाव के चलते
इस वर्ष आलू की फसल में प्रति एकड़ की लागत 35 हजार रूपयों से बढ़ कर 60 हजार तक पहुंच
गई है,
पर मौसम का साथ नहीं मिल पाने से इस वर्ष यहंा आलू की खेती घाटे का धंधा साबित
हो रहा है। पंड्रापाठ क्षेत्र में आलू की फसल लेने वाले किसानों का कहना था कि जिन
खेतों में 50 बोरी आलू बीज लगाया गया था वहां पर अब मुष्किल
से 20 बोरी ही आलू
की फसल निकल पा रही है। आलू की पैदावार लेने वाले किसानों की सबसे बड़ी परेषानी यह है
कि खेतों से फसल निकालने के लिए उन्हे खुला मौसम की जरूरत पड़ती है। आलू की पैदावार
खेतों से निकालने के बाद पानी में भीेंग जाने से यह फसल दो तीन दिन के बाद ही गलने
और काली पड़ने लगती है। इस समस्या के चलते बाहर के खरीददार भी यहंा आलू के सौदे करने
से कतरा रहे हैं। बगीचा क्षेत्र में इन दिनो सैकड़ो क्विंटल आलू खेतों में रह जाने से
यहां करोड़ों रूपयों का नुकसान की बात कही जा रही हैं।
आलू पर भारी पड़ी बारिश
बगीचा के कृषि उद्यान अधीक्षक सीआर चैहान ने बताया
कि पिछले दिनों अधिक वर्षा के चलते पंड्रापाठ क्षेत्र में आलू की फसल आद्रगलन रोग की
चपेट में आ गई थी। अब बारिश थमने के बाद खेतों से आलू की फसल निकालने में विलम्ब हो
गया है। उन्होंने बताया खरीफ मौसम की आलू फसल खेतों से निकालने में थोड़ी देर हो जाने
से यह फसल नमी के चलते खेतों में ही खराब होने लगी थी। श्री चैहान ने बताया कि बगीचा
क्षेत्र का पठारी इलाका में लगभग 700 हेक्टेयर भूमि पर खरीफ आलू की पैदावार
ली जाती है। इस बार आद्रगलन और फसल निकालने में विलम्ब हो जाने से नुकसान की सम्भावना
देखी जा रही है।
नहीं मिलता मोबाइल पर कृषि मैसेज
बगीचा क्षेत्र के किसानों का कहना था कि कृषि विभाग
का सूचना तंत्र महज दिखावा साबित हुआ है। किसानों व्दारा खेती से संबंधित अपनी समस्याओं
के लिए मोबाइल से मैसेज करने पर उन्हे कोई मदद नहीं मिल पाती है। यहां पर तिलडेगा के
उन्नतशील किसान मनोज अम्बस्थ ने बताया कि खरीफ फसल पर कीट प्रकोप और प्राकृतिक विपदा
ने अनेक किसानों के माथे पर चिंता की लकीर बढ़ा दी है। इस किसान का कहना था कि धान तथा
अन्य खेती के बारे में कृषि वैज्ञानिकों से उचित सलाह नहीं मिल पा रही हैं। किसानों
व्दारा मोबाइल पर मैसेज करने के बाद कृषि विभाग का सूचना तंत्र से कोई जवाब नहीं मिल
पा रहा है। किसानों में कृषि विभाग का अमला की इस दिषा में बेरुखी को लेकर काफी आक्रोश
व्याप्त है।