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गुरुवार, 15 मई 2014

निजी महत्वाकांक्षाओं से बिखरते हैं परिवार

जगनलाल अग्रवाल का संयुक्त परिवार
    आज  संयुक्त परिवार दिवस पर विशेष: 
रामदास अग्रवाल का संयुक्त परिवार
 दूर दूर रह कर भी भावनात्मक जुड़ाव जरूरी
 रमेश शर्मा /            पत्थलगांव/    
           अधिकांश लोगों को संयुक्त परिवार की मधुर स्मृतियंा याद होने के बाद भी अब ज्यादा सदस्यों का घर कम ही दिखाई पड़ता है। पुराने लोगों का कहना है कि निजी महत्वाकांक्षा के चलते परिवार का बिखराव के बाद एकल परिवारों की गिनती बढ़ गई है। बुजुर्ग लोगों का भी मानना है कि संयुक्त परिवार में रहने का एक अलग ही आनंद है।जब तक परिवार संयुक्त रहता है, उसका हर सदस्य अनुशासन में रहता है। उसको कोई भी गलत कार्य करने से पहले बहुत सोचना समझना पड़ता है। लेकिन एकल परिवार में सही मार्ग दिखाने वाला नहीं रहने से कई लोग भटक कर परेशानी में पड़ जाते हैं।
           यहाँ के प्रमुख समाजसेवी रामदास अग्रवाल का कहना है कि बदलते सामाजिक परिवेश में दूर दूर रह कर भी भावनात्मक जुड़ाव को मजबूती से कायम रखने की बात पर ही ध्यान देना चाहिए। एक शहर में ही रहने वाले परिवार के सदस्यों को आपसी मेलजोल में थोड़ा मिठास बढ़ाकर भावनात्मक संबंध को सुदृढ़ रखना चाहिए।
         श्री अग्रवाल का कहना था कि मुश्किल और जरूरत के मौके पर अपना परिवार की याद आने के बाद भी आज बदलते सामाजिक परिदृश्य में संयुक्त परिवार तेजी से टूट रहे हैं और उनकी जगह एकल परिवार लेते जा रहे हैं। लेकिन बदलती जीवनशैली और प्रतिस्पर्धा के दौर में तनाव तथा अन्य मानसिक समस्याओं से निपटने में केवल अपनों का साथ ही अहम भूमिका निभा सकता है। उन्हांेने कहा कि संयुक्त परिवार में आस पास काफी लोगों की मौजूदगी से एक दूसरे का आत्मविश्वास और एक सहारा का काम करती है। उन्होंने बताया कि संयुक्त परिवार में जहाँ बच्चों का लालन पालन और मानसिक विकास अच्छे से होता है, वहीं वृद्धजन का अंतिम समय भी शांति और खुशियों के बीच गुजरने लगता है।
    श्री अग्रवाल का कहना था कि वृद्धजनों को अपनों से प्यार नहीं मिल पाने से ही उनकी चिड़चिड़ाहट दिखती है, लेकिन संयुक्त परिवार में रह कर ही वृद्धजन अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर पाते हैं। श्री अग्रवाल का कहना था कि हमारे बच्चे संयुक्त परिवार में दादा दादी, काका काकी, बुआ आदि का प्यार की छाँव में खेलते कूदते बड़े होते हैं। इस दौरान उन्हें परिवार के संस्कारों का भी ज्ञान मिलने लगता है। रामदास अग्रवाल का कहना था कि पहले प्रत्येक परिवार में कुटुम्ब व्यवस्था होती थी, पर अब आपस में ईर्ष्या और पश्चिमी सभ्यता का चलन बढ़ जाने से ज्यादातर परिवार एकल परिवार में बदलते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज इक्का दुक्का घरों में ही संयुक्त परिवार का दृश्य देखने को मिलता है। इसमें भी अब शिकवा शिकायत और बिखराव की बातों पर ही जोर दिया जा रहा है। उन्हांेने कहा कि भले ही परिजन दूर हो जाएँ, पर आपस का प्रेम कम नहीं होना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि भावनाओं के धागे से पूरे परिवार को जोड़ कर रखा जाए। यह तभी संभव हो सकता है जब हम आपस का मेल मिलाप को निरंतर बनाऐ रखें। खास मौके पर सभी लोग एक साथ मिलने से भी दूरियाँ कम होती हैं। परिवार में शादी ब्याह, जन्मदिन या खुशी के अवसर पर एक साथ मिलने का प्रयास को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए।
                                                      65 सदस्यों का संयुक्त परिवार
    यहाँ के गिने चुने संयुक्त परिवारों में से एक जगनलाल अग्रवाल का भी परिवार है। 65 सदस्यों का यह परिवार अपने व्यावसायिक कामकाज से भले ही अलग अलग रहने लगा हैं, लेकिन सभी सदस्यों का आपसी प्यार यथावत है। शादी ब्याह, अथवा किसी भी सुख दुख में छः भाई और तीन बहनों के परिवार के सभी सदस्य अपना व्यवसाय छोड़कर एक छत के नीचे बैठ जाते हैं। ऐसे अवसर में इस संयुक्त परिवार का हंसी मजाक देखते ही बनता है। इस परिवार को पिकनिक जाने के लिए एक बस भी छोटी पड़ जाती है।
    इस परिवार के मुखिया जगनलाल अग्रवाल का कहना था कि संयुक्त परिवार में अगर सुखी रहना है, तो लेने की प्रवृति का परित्याग कर देने की प्रवृत्ति रखनी पड़ेगी। परिवार के हर सदस्य का नैतिक कर्तब्य है कि वे एक दूसरे की भावनाओं का आदर कर आपस में तालमेल रख कर चलें। ऐसा कोई कार्य न करें, जिससे दूसरे की भावनाओं को ठेस पहुंचे। संयुक्त परिवार में किसी भी विषय को अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा नहीं बनाने से परिवार के सदस्यों का आपसी प्रेम बना रहता है। जगनलाल अग्रवाल का कहना था कि थोड़ गम खा कर और त्याग करके ही संयुक्त परिवार चलाया जा सकता है। इसमें भी सबसे अधिक अहम भूमिका परिवार के मुखिया की बन जाती है। उन्होंने कहा कि आज छोटा भाई बड़े भाई से राम बनने की अपेक्षा करता है,किन्तु स्वयं भरत बनने को तैयार नहीं। इसी तरह बड़ा भाई छोटे भाई से अपेक्षा करता है कि वह भरत बने लेकिन स्वयं राम की भूमिका कर पाने में असफल हो जाता है। उन्हांेने कहा कि सास बहू से अपेक्षा करती है कि वह उसको मां समझे, लेकिन सवयं बहू को बेटी मानने तैयार नहीं। बहू चाहती है कि सास मुझको बेटी की तरह माने, लेकिन स्वयं सास को मां जैसा आदर नहीं दे पाती। यह परस्पर विरोधाभास ही सभी परिवार में कलह का मूल कारण होता है।इसके लिए हमें थोड़ा सा त्याग करने की जयरत पड़ती है। इससे संयुक्त परिवार टूटने से बच सकते हैं।उनहोने कहा कि संयुक्त परिवार में सभी सदस्य एक दूसरे के आचार व्यवहार पर निरंतर निगरानी बनाए रखते हैं।यही वजह है कि परिवार में किसी भी सदस्य की अवांछनीय गतिविधियों पर अकुंश लगा रहता है। परिवार में बुजुर्ग सदस्यों को सम्मान देने से शराब,जुआ या अन्य कोई नशा जैसी बुराईयों से बचा रहता है। परिवार में यह सिलसिला लगातार चलाया जा सकता है। इससे संयुक्त परिवार की अपनी गरिमा और बढ़ जाती हैं।
                                                     आत्म विश्‍वास के साथ त्याग भी
         यहाँ के प्रीतपाल भाटिया का कहना था कि संयुक्त परिवार में बच्चों के लिए सर्वाधिक सुरक्षित और उचित विकास का अवसर प्राप्त होता है। उन्होने कहा कि बच्चे की इच्छाओं और आवश्यकताओं का अधिक ध्यान रखा जा सकता है। श्री भाटिया का कहना था कि बच्चे को दादा दादी से प्यार के साथ ज्ञानवर्धक शिक्षा भी मिलती है। यह अवसर एकाकी परिवार में बहुत कम रहता है।उन्होने कहा कि एकल परिवार में बच्चे के मस्तिष्क की संरचना अलग होती है। यही वजह है कि वह भी आगे चल कर एकल परिवार को पसंद करने लग जाते हैं।श्री भाटिया का कहना था कि एक नई सोच के साथ परिवार को आज भी संयुक्त रखा जा सकता है, बशर्ते थोड़ा त्याग और आत्मविश्वास होना चाहिए।

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