महिलाओं ने विधि
विधान से की
शीतला माता की आराधना
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सूर्योदय से पहले बासी भोजन से होती है शीतला माता की पूजा
पत्थलगांव/ रमेश
शर्मा
रोग मुक्ति और शांति
प्राप्ति के लिए रविवार और सोमवार को सूर्योदय से पहले महिलाओं ने मां शीतला को बासी
भोजन का भोग लगाकर श्रद्धा और विश्वास के साथ उनकी आराधना की।
शहर में सुता तालाब
के समीप शीतला माता का वर्षो पुराना मंदिर बना हुआ है। यहां पर भोर से ही पूजा अर्चना
करने वालों की लम्बी कतार लग गई थी। शीतला सप्तमी के अवसर पर श्वेत पाषाण रूपी मां
के पूजन की प्राचीन परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि शीतला माता का विधि विधान से पूजन
करने के बाद पूरे साल भर तक परिवार में शांति और शीतलता बनी रहती है।
होली का त्योहार
के सातवें दिन गृहणियों व्दारा इस पूजा के लिए एक दिन पहले ही मीठे चावल के साथ विभिन्न
व्यंजन तैयार किए जाते हैं। यहां मारवाड़ी महिलाओं में ऐसी परंपरा है कि होलिका दहन
के पश्चात वहां से ठंडी राख घर में लाई जाती है। इसके बाद सप्तमी अथवा प्रथम सोमवार
व गुरुवार को शीतला माता की पूजा अर्चना की जाती है।
बासी भोजन
व चूल्हा ठंडा रहने की परम्परा
यहां मारवाड़ी महिला
मंडल की अध्यक्ष श्रीमती चन्दा गर्ग का कहना है कि भगवती शीतला की पूजा का विधान बहुत
ही विशिष्ट है। शीतला सप्तमी के दिन उन्हें पूरी शुद्धता के साथ बनाया हुआ बासी भोजन
का भोग लगाया जाता है। यही वजह है कि इस पर्व को उत्तर भारत में बासौड़ा के नाम से भी
जाना जाता है। श्रीमती गर्ग का कहना था कि इस त्यौहार पर बासी भोजन खाने की परम्परा
थोड़ा चौकाती हैं,
लेकिन
इसके पीछे तर्क यह है कि इस समय से वसंत की विदाई होती है और ग्रीष्म का आगमन होता
है।इसलिए आगे बासी भोजन से परहेज करना चाहिए। यहा श्रीमती नंदा शर्मा और मान्या शर्मा
ने बताया कि शीतला पूजा के दिन घरों में चूल्हा नहीं जलता है। वर्षो पुरानी इस परम्परा
को आज भी पूरे आस्था और विश्वास के साथ पालन किया जाता है।
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