ग्राम गाला के समीप राजस्व भूमि पर अवैध कटाई के बाद पेड़ो के ठूंठ |
विश्व पृथ्वी दिवस पर संगोष्ठी :
जरूरी उपायों में देना होगा वक्त
पत्थलगांव/ रमेश शर्मा
पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ने के बाद भी अपने ज्ञान का उपयोग पर्यावरण को बचाने में नहीं हो पा रहा है। इस दिशा में केवल हवा हवाई प्रयास के चलते भू जल, वन, पर्यावरण और हमारी कृषि सबसे अधिक प्रभावित हुई है।
विश्व पृथ्वी दिवस पर यहाँ सामुदायिक भवन में आयोजित संगोष्ठी में इस अंचल के प्रमुख पर्यावरणविद डा.परिवेश मिश्रा के मुताबिक शासकीय अमला भी पर्यावरण की चिंता केवल फाइलों में कर के शांत बैठ जा रहे हैं। इससे कृषि पर विपरित असर पड़ने के साथ सभी चीजें प्रभावित हो रही हैं। इससे हमारी पृथ्वी का संतुलन तेजी से बिगड़ रहा है। उन्हांेने कहा कि प्रदेश के हर हिस्से में भू-जल स्तर में तेजी से गिरावट दर्ज की जा रही है। इसके वाद भी हम जरूरी उपायों को लागू कर पाने में कोताही बरत रहे हैं। डा.मिश्रा ने कहा कि वाटर हार्वेस्टिंग के मामले में हमारी लापरवाही सबसे अधिक देखी जा रही है। नए बनने वाले शासकीय भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग न होना बेहद चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि वर्षा कराने में सहायक वनों को भी विकास की भेंट चढ़ाते जा रहे हैं।
औद्यौगिक विकास के कारण प्रदूषण तो फैल ही रहा है साथ ही रोज नई बीमारियों को जन्म दे रहा है। मौसम का मिजाज बदलने में प्रदूषण सबसे बड़ा कारक साबित हुआ है। खंड वर्षा, अमलीय वर्षा और बे मौसम बरसात से हमारी कृषि का काम बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। डा.मिश्रा का कहना था कि धरती के संरक्षण और हरियाली को सीेजने की प्रत्येक व्यक्ति के व्दारा ईमानदारी से कोशिश होनी चाहिए। उन्होने कहा कि इस दिशा में कलेक्टर की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। प्रति सप्ताह समय अवधि की बैठक के बाद इस कार्य का औचक निरीक्षण से कार्यो में कसावट आ सकती है।
वरिष्ठ पत्रकार राजेश अग्रवाल का कहना था कि धरती को बचाने कई संस्थाओं ने बोगस कार्य से केवल लूट-खसोट का काम किया जा रहा है। पर्यावरण संरक्षण के नाम पर बोगस कार्य करने वालों के विरूध्द दंडात्मक कार्रवाई में विलंब नहीं होना चाहिए। इससे अन्य संस्था भी अपना काम को ईमानदारी पूर्वक करके धरती सरंक्षण में बेहतर सहयोग करेगी।
पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ने के बाद भी अपने ज्ञान का उपयोग पर्यावरण को बचाने में नहीं हो पा रहा है। इस दिशा में केवल हवा हवाई प्रयास के चलते भू जल, वन, पर्यावरण और हमारी कृषि सबसे अधिक प्रभावित हुई है।
विश्व पृथ्वी दिवस पर यहाँ सामुदायिक भवन में आयोजित संगोष्ठी में इस अंचल के प्रमुख पर्यावरणविद डा.परिवेश मिश्रा के मुताबिक शासकीय अमला भी पर्यावरण की चिंता केवल फाइलों में कर के शांत बैठ जा रहे हैं। इससे कृषि पर विपरित असर पड़ने के साथ सभी चीजें प्रभावित हो रही हैं। इससे हमारी पृथ्वी का संतुलन तेजी से बिगड़ रहा है। उन्हांेने कहा कि प्रदेश के हर हिस्से में भू-जल स्तर में तेजी से गिरावट दर्ज की जा रही है। इसके वाद भी हम जरूरी उपायों को लागू कर पाने में कोताही बरत रहे हैं। डा.मिश्रा ने कहा कि वाटर हार्वेस्टिंग के मामले में हमारी लापरवाही सबसे अधिक देखी जा रही है। नए बनने वाले शासकीय भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग न होना बेहद चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि वर्षा कराने में सहायक वनों को भी विकास की भेंट चढ़ाते जा रहे हैं।
औद्यौगिक विकास के कारण प्रदूषण तो फैल ही रहा है साथ ही रोज नई बीमारियों को जन्म दे रहा है। मौसम का मिजाज बदलने में प्रदूषण सबसे बड़ा कारक साबित हुआ है। खंड वर्षा, अमलीय वर्षा और बे मौसम बरसात से हमारी कृषि का काम बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। डा.मिश्रा का कहना था कि धरती के संरक्षण और हरियाली को सीेजने की प्रत्येक व्यक्ति के व्दारा ईमानदारी से कोशिश होनी चाहिए। उन्होने कहा कि इस दिशा में कलेक्टर की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। प्रति सप्ताह समय अवधि की बैठक के बाद इस कार्य का औचक निरीक्षण से कार्यो में कसावट आ सकती है।
वरिष्ठ पत्रकार राजेश अग्रवाल का कहना था कि धरती को बचाने कई संस्थाओं ने बोगस कार्य से केवल लूट-खसोट का काम किया जा रहा है। पर्यावरण संरक्षण के नाम पर बोगस कार्य करने वालों के विरूध्द दंडात्मक कार्रवाई में विलंब नहीं होना चाहिए। इससे अन्य संस्था भी अपना काम को ईमानदारी पूर्वक करके धरती सरंक्षण में बेहतर सहयोग करेगी।
लुड़ेग के समीप वनों की अंधाधुंध कटाई ने बिगाड़ा धरती का स्वरूप |
दो साल में 200 वर्ग कि.मी. जंगल घटा
यहाँ के वन प्रेमी निशिकांत अग्निहोत्री का कहना था कि बीते दो साल में ही छत्तीसगढ़ में 200 वर्ग किलोमीटर जंगल घट गया है। उन्होंने बताया कि वनभूमि को तेजी से सामान्य भूमि में बदल दिए जाने के कारण अब चिंताजनक हालत बनने लगी है। श्री अग्निहोत्री का कहना था कि बांध तो बनाए जा रहे हैं पर उनमें पानी भराव और कार्य की गुणवत्ता को अनदेखा कर देने से भू जल स्तर में गिरावट कम नहीं हो रही हैं। उन्होने बताया कि बीते एक दशक में छत्तीसगढ़ की जलवायु में इतना परिवर्तन हुआ है कि कई इलाकों में बारिश की मात्रा में अप्रत्याशित कमी दर्ज की गई है। उन्होने कहा कि वन भूमि का तेजी से घटते रकबे के चलते खेती के कामकाज पर सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ा है।
यहाँ के किसान नेता वेदप्रकाश मिश्रा ने कहा कि हम रासायनिक खाद के उपयोग से धान का उत्पादन तो बढ़ा रहे हैं,लेकिन इससे फसल की गुणवत्ता घट रही है और उपजाउ मिटटी भी खराब हो रही है। श्री मिश्रा ने कहा कि तापमान में लगातार हो रही वृध्दि के चलते धान और गेंहू का उत्पादन पर भी असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि पहले असिंचत अवस्था में गेहू का उत्पादन होता था,जो अब बंद हो गया है। श्री मिश्रा ने कहा कि किसानों को फसलों का सुधार के लिए अब फसल चक्र में परिवर्तन की जरूरत है।
बंजर भूमि में फलोद्यान कार बनाया आय का साधन
प्रमुख समाजसेवी डा.मेनका सिंह का कहना था कि दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही धरती की तपन का मुख्य कारण वैसे तो प्रकृति के साथ हो रहे छेड़छाड़ को ही माना जाता है। उन्होने कहा कि जंगलों की अंधाधुंध कटाई पर अभी भी लोग सचेत नहीं हो रहे हैं। हमारे विकास कार्यो में क्राक्रीटीकरण पर ही सबसे अधिक जोर दिया जा रहा है। हाई पावर की विद्युत लाईन अथवा उद्योग धंधों का विस्तार में सबसे पहले हरियाली को नष्ट किया जा रहा है। तेजी से होने वाले कांक्रीटीकरण के चलते भूगर्भ में जल का प्रवेश अवरूद्ध़ होने से जगह जगह पानी की दिक्कतें बढ़ रही है। डा.मेनका सिंह का कहना था कि धरती के साथ छेड़छाड़ करके हम अपनी मुश्किलों में लगातार इजाफा कर रहे हैं। उन्होने कहा कि अब विचार विमर्श नहीं बल्कि कुछ ठोस व सार्थक पहल करनी होगी। इस संगोष्ठि में मिर्जापुर के किसान अकलू राम व्दारा अपनी बजंर और पथरीली भूमि में रसीले आम का बगीचा तैयार करने की सराहना की गई। इसी तरह ग्राम मुड़ापारा में वहाँके किसान निरंजन साय ने भी अपनी अनुपयोगी भूमि पर सघन फलोद्यान करके उसे अच्छी कमाई का साधन बनाने पर भी चर्चा की गई। यहाँ पर उपस्थित किसानों का कहना था कि ऐसे लोगों को पुरूष्कृत करके उनके अनुभव का दूसरे किसानों को भी लाभ देना चाहिए।
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