पत्थलगांव/जशपुर जिले
की ऊंची-नीची पहाड़ियों और नदी तट वाले क्षेत्र में लगने वाली पीले फुलों वाली रामतिल
की फसल ने छत्तीसगढ़ की विदेशों में अलग पहचान बना दी है। विदेशी परिन्दो को रास आने
वाली इस तिलहन फसल का बीते 2 वर्षो से बम्फर निर्यात
की बदौलत यहां मे.विनोद जैन एप्रोएक्जिम प्राइवेट लिमिटेड के संचालक को केन्द्र सरकार
ने पुरूस्कार से भी नवाजा गया है।
श्री जैन ने वर्ष 2011-2012 में जशपुर जिले से साढे़
छः हजार मेट्रिक टन रामतिल का रिकार्ड निर्यात किया था। इसके बाद वर्ष 2012-2013 में भी लगभग सात हजार
मेट्रिक टन का निर्यात करने पर लगातार दूसरे वर्ष केन्द्र सरकार व्दारा पुरस्कृत किया
है। रामतिल का निर्यात में बेहतर प्रदर्शन दिखाने वाले श्री जैन को बीते वर्ष गोवा
में तथा इस वर्ष अक्टूबर माह में हैदराबाद में आयोजित एनुवल ट्रेड मीट के कार्यक्रम
में संचालक विनोद जैन व संजना जैन को एग्रीकल्चर एंड प्रोसिड फूड प्राडक्ट एक्सपोर्ट
डेवलपमेंट अथार्टी ने पुरस्कृत किया है।
जशपुर जिले में सबसे ज्यादा रामतिल का उत्पादन
कुनकुरी, बगीचा, जशपुर
और मनोरा क्षेत्र में होता है। यहां कृषि अधिकारियों का मानना है कि जशपुर की अनुकुल
जलवायु के चलते इस अचंल में सबसे अच्छी क्वालिटी का रामतिल की फसल तैयार होती है। यहां
के किसान अगस्त माह में रामतिल की बोआई करने के बाद नवम्बर दिसंबर माह में इस फसल को
काट कर अपने खलिहानों में इकटठा कर लेते हैं।
रामतिल की फसल के लिए यहां की बालुई दोमट और पथरीली
पहाड़ी की उंची नीची जमीन काफी उपयुक्त मानी गई है। इस फसल के लिए 18 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान
मिलने के बाद यहां के खेतों में रामतिल फसल की पीली चादर का नजारा दूर से ही दिखाई
देता है। यहां पर रामतिल की उपज लेने वाले किसानों का कहना है कि उन्हे प्रति एकड़ 4 से 5 क्विंटल का उत्पादन मिल जाता है।किसानों का
कहना है कि मिटटी में मौजूद पोषक तत्व और हल्की बारिश हो जाने के बाद यह फसल देखते
ही देखते लहलहाने लगती है। यही वजह है कि रामतिल की फसल किसानों के साथ व्यापारियों
के लिए भी लाभ का सौदा माना जाता है।
जशपुर के प्रमुख व्यवसायी विनोद जैन ने रामतिल
की फसल का निर्यात करने का लायसेंस लेकर क्लिनिंग के लिए प्लांट भी लगा लिया है। जशपुर
जिले में यह प्रदेश का एक मात्र क्लिनिंग प्लांट है। यहां पर 25 और 50 किलों की पैकिग के बाद
इसे मुंबई और विशाखापटनम के बन्दरगाहों से अमेरिका तथा यूरोपीय देशों में निर्यात किया
जा रहा है।
पूरे विश्व में भारत का रामतिल सबसे अच्छी क्वालिटी
का माना जाता है। इस वजह अमेरिका, नाथरलैंड,
स्पेन, बेल्जियम,
कनाडा, मैक्सिको,
इंडोनेशिया, सिंगापुर आदि देश के व्यवसायी अब सीधे छŸीसगढ़ में सम्पर्क करने लगे हैं। छŸाीसगढ़ का रामतिल विदेशों में पहुंचने के बाद इसे एक किलो के
छोटे पैकटो में भर कर बेचा जाता है। यूरोप और अमेरिका में रामतिल को पक्षियों को खिलाया
जाता है।
आसानी से पड़ती विदेशी
परिन्दो की नजर
अमेरिका और यूरोपीय देशो
में चारों ओर बर्फ की चादर ढकी होने के चलते पक्षियों को भोजन मिलने की परेशानी बन
जाती है।ऐसे वक्त में विदेशी परिन्दो के लिए छत्तीसगढ़ का रामतिल इनका सबसे बेहतर भोजन
बन जाता है। ठंडे देशों के नागरिक अपने घर के आस पास एक डब्बे में रामतिल को रख कर
पक्षियों के लिए छोड़ देते हैं। कुछ लोग इसे बर्फ पर भी बिखेर देते हैं। विदेशों के
पक्षी प्रेमियों का कहना है कि बर्फ पर काले रंग का रामतिल को बिखेर देने के बाद इस
पर विदेशी परिन्दो की नजर आसानी से पड़ जाती है। सफेद बर्फ पर बिखरा हुआ रामतिल को विदेशी
परिन्दे देखते ही देखते चट कर जाते हैं।
दो दशक पहले जब यहां से रामतिल का निर्यात नहीं
हो पाता था उस समय यहां के किसानों को अपनी फसल औने पौने दाम पर बेचनी पड़ती थी। लेकिन
केन्द्र सरकार व्दारा निर्यात में सरलीकरण करने के बाद जशपुर का रामतिल की पुछ परख
बढ़ गई है। यहां के किसानों को मौजूदा समय में रामतिल 40 से 42 रूपये प्रति किलो के
दाम मिल रहे हैं।
राज्य में नहीं मिल रहा
किसानों को प्रोत्साहन
विदेशों में छŸाीसगढ़
राज्य को अलग पहचान देने वाला रामतिल का उत्पादन करने वाले किसान और निर्यात करने वाले
व्यापारियों को राज्य सरकार ने अभी तक प्रोत्साहन देने की योजना नहीं बनाई है। जशपुर
जिले के किसान लगभग 24000 हेक्टेयर भूमि पर रामतिल
का उत्पादन करते हैं। स्थानीय लोग रामतिल को गुंजा के नाम से जानते हैं। पूर्व मंत्री
गणेशराम भगत का कहना है कि जशपुर जिले में रामतिल की फसल के लिए अनुकूल जलवायु है।
यहां के किसानों को राज्य सरकार व्दारा प्रोत्साहन देने के लिए पहल करनी चाहिए। श्री
भगत का कहना था कि आदिवासी बाहुल्य जिले के व्यापारियों को भी शासन को मंडी टैक्स तथा
अन्य छुट देकर इस दिशा में सार्थक पहल करनी चाहिए।
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