गाजर घास के साथ |
जशपुर
जिले में बारिश के दिनों में जगह जगह उग गई गाजर घास लोगों के लिए परेषानी का सबब
बन गई है।घर के आस पास आबादी क्षेत्र के अलावा खेतों में भी गाजर घास बहुतायत में
देखी जा रही है। फसल के बीच में स्वतः उगने वाली गाजर घास से फसल प्रभावित होने पर किसानों
को इससे अच्छी खासी परेषानी का सामना करना पड़ रहा है।
शहर में
जगह जगह उग चुकी गाजर घास की सफाई के लिए नगर पंचायत ने अभी तक कोई पहल नहीं की है।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि जिस क्षेत्र में गाजर घास अधिक मात्रा में उग चुकी
है वहां रहने वालों को चर्म रोग की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उदयानन अधीक्षक प्रकाश
सिंह भदौरिया का कहना है कि गाजर घास को उखाड़ कर गडडे में दबा देने से ही राहत मिल
सकती है। उन्होने कहा कि यह घास पषुओं के साथ साथ मनुष्य के लिए भी नुकसानदायक है। शहर
के ज्यादातर मुहल्लों में इन दिनो गाजर घास का प्रकोप फैल गया है। गलियों में सड़क के
किनारे तथा घरों के आस पास काफी बड़ी तादाद में गाजर घास उग जाने से लोगों को आने जाने
में भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
शहर में
जशपुर मुख्य मार्ग के किनारे, सिंचाई कालोनी, रेस्ट हाउस मुहल्ला, बिलाईटांगर तथा वार्ड क्रमांक
7 और 8 में गाजर घास का सबसे ज्यादा
प्रकोप देखा जा रहा है। बेलघाटी मुहल्ला में रहने वाले गुरूचरण सिंह भाटिया ने बताया
कि उनके मुहल्ले में घरों के आसपास तथा सड़क के किनारे गाजर घास उग जाने से लोगों को
काफी परेषानी का सामना करना पड़ रहा है।यहंा के किसान गणेशचन्द्र बेहरा ने बताया कि
गाजर घास फसल के बीच में उग जाने से फसल की पैदावार में भी कमी आती है।उन्होने बताया
कि खेतों में काम करने वाले मजदूर गाजर घास के सम्पर्क में आने से उनके व्दारा चर्म
रोग की शिकायत की जाती है।श्री बेहरा ने बताया कि गाजर घास के बीज काफी सुक्ष्म होने
के कारण स्वतः उग जाते हैं। उन्होने बताया कि गाजर घास का फूल आने से पहले इस उखाड़
कर नष्ट करने से ही थोड़ी राहत मिल पाती हैं।
सिविल
अस्पताल के चिकित्सक बसंत सिंह का कहना है कि गाजर घास के पौधों से बचकर रहना चाहिए।
इसके सम्पर्क में आने से एलर्जी, एक्जिमा जैसे रोगों की सम्भावना
बनी रहती है। उन्होने कहा कि बरसात के दिनों में यह वनस्पति घर के आस पास तथा खेत खलिहानों
में काफी बड़ी तादाद में स्वतः उग जाती है।
फूल
लगने से पहले नष्ट करें
वन मंडल
अधिकारी चन्द्रषेखर तिवारी ने बताया कि वनस्पति विज्ञान में गाजर घास का नाम पार्थेनियम
है। मगर क्षेत्रिय भाषा में इसे गाजर घास कहा जाता है। इस पौधे का मूल स्थान मैक्सिको वेस्टइंडिज तथा मध्य व उत्तरी
अमेरिका माना जाता है। इस घास में फूल लगने से पहले ही इसे नष्ट करके त्वचा के रोगों
से बचा जा सकता है। गाजर घास का प्रत्येक पौधा पांच हजार सुक्ष्म बीज पैदा कर सकता
है। उन्होने बताया कि भारत में पहली बार गाजर घास महाराष्ट्र के पूर्वी क्षेत्र में
1964 में देखने को मिली थी।
ऐसा माना जाता है कि अमेरिका,कनाडा से आयातित गेंहू के साथ इसका आना हुआ है।