पत्थलगांव/ रमेश शर्मा/
छत्तीसगढ़ के स्कूलों में नन्हे बच्चों को खेल के साथ पढ़ाई का प्रयोग बेहद कारगर साबित हो रहा है। नन्हे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए नर्सरी तथा बाल मंदिरों में खिलौने तथा प्रेरणादायी चित्र के माध्यम से पढ़ाया जा रहा है।छोटे बच्चों को खेल खेल में अक्षर ज्ञान तथा अन्य उपयोगी शिक्षा देने वाले स्कूल काफी रास आ रहे हैं।
खेल खेल में छोटे बच्चे गिनती और शरीर के विभिन्न अंग के नाम को आसानी से याद कर ले रहे हैं। बच्चों को इन स्कूलों में पढ़ाई के दौरान गीत संगीत की भी शिक्षा दी जाती है। अपने हमउम्र सहपाठियों के साथ कक्षा में खेलकूद करना और शैतानी करने की छुट के चलते बच्चों का स्कूल में देखते ही देखते समय व्यतीत हो जाता है।छोटे बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि प्रारम्भिक दौर में यह पढ़ाई बेहद लाभप्रद है।स्कूल में जाकर ये नन्हे बच्चे अपना टिफिन ,पानी की बाटल और स्कूल का बस्ता के प्रति सजग रहने लगे हैं।
छत्तीसगढ़ के स्कूलों में नन्हे बच्चों को खेल के साथ पढ़ाई का प्रयोग बेहद कारगर साबित हो रहा है। नन्हे बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए नर्सरी तथा बाल मंदिरों में खिलौने तथा प्रेरणादायी चित्र के माध्यम से पढ़ाया जा रहा है।छोटे बच्चों को खेल खेल में अक्षर ज्ञान तथा अन्य उपयोगी शिक्षा देने वाले स्कूल काफी रास आ रहे हैं।
खेल खेल में छोटे बच्चे गिनती और शरीर के विभिन्न अंग के नाम को आसानी से याद कर ले रहे हैं। बच्चों को इन स्कूलों में पढ़ाई के दौरान गीत संगीत की भी शिक्षा दी जाती है। अपने हमउम्र सहपाठियों के साथ कक्षा में खेलकूद करना और शैतानी करने की छुट के चलते बच्चों का स्कूल में देखते ही देखते समय व्यतीत हो जाता है।छोटे बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि प्रारम्भिक दौर में यह पढ़ाई बेहद लाभप्रद है।स्कूल में जाकर ये नन्हे बच्चे अपना टिफिन ,पानी की बाटल और स्कूल का बस्ता के प्रति सजग रहने लगे हैं।
इन स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों का कहना है कि जस्ट प्ले एंड लर्न पदयति की शिक्षा नन्हे बच्चों के लिए जितनी सहज है उसके विपरित शिक्षकों के लिए यह बेहद चुनौतीभरा काम रहता है। ठीक से अपनी बात को व्यक्त तक नहीं कर पाने वाले नन्हे बच्चों की भाषा को भी समझ कर उन्हे खुश रखना बेहद कठिन काम होता है।मगर नन्हे बच्चों की मीठी बोली के बाद कोई भी कठिन काम आसानी से पूरा हो जाता हैं। नन्हे बच्चों के शिक्षकों का कहना था कि प्रारंभिक काल में शिक्षा के प्रति बच्चों को प्रेरित करना हाई स्कूल में पढ़ाने से भी ज्यादा चुनौती भरा काम रहता है। एक शिक्षिका ने बताया कि नन्हे बच्चों की शरारत तथा उनके अजीबो गरीब सवाल के बीच उन्हे कभी भी अपना काम कठिन नहीं लगता है।
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