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गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

रोगों के उपचार में भी ज्योतिष शास्त्र उपयोगी: डा.त्रिपाठी

डा. शत्रुघन त्रिपाठी  ज्योतिषविद पत्थलगांव
पत्थलगांव/ 
ज्योतिष शास्त्र में मांगलिक व वैवाहिक कार्यो का मुहूर्त के अलावा हृदय रोग, नेत्र रोग तथा अनेक जटिल रोगों का उपचार के लिए कई उपयोगी उपाय बताए गए हैं। इन उपायों को निश्चित समय पर करने से न केवल स्वास्थ्य में तेजी से सुधार होता है बल्कि रोग का सही उपचार के बाद जीवन की निराशा से भी बचा जा सकता है।
     उक्त बातें शनिवार को किलकिवरधाम में आयोजित निरोग जीवन के लिए जरूरी उपाय विषय पर आयोजित संगोष्ठि में प्रमुख ज्योतिषविद डा.शत्रुघन त्रिपाठी ने कही। काषी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के प्रोफेसर डा.त्रिपाठी को इस वर्ष हृदय रोग का ज्योतिष शास्त्रीय निदान एवं उपचार विषय पर किए गए शोध पर उन्हे राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने पुरस्कार से सम्मानित किया है।
       इस संगोष्ठि में उन्होने बताया कि ज्योतिष शास्त्र में मानव जीवन के भाग्य निर्धारण, शुभाशुभ निर्धारण के साथ स्वास्थ्य संबंधी सभी जानकारी पूर्णतः वैज्ञानिक हैं। प्राचीनकाल में केवल 2 विज्ञान थे, पहला आयुर्वेद विज्ञान जो स्वास्थ्य रक्षण में तत्पर था । दूसरा आज के विख्यात सभी विज्ञान के अनुभागों को अपने गर्भ में संजोया था। उन्होने बताया कि ज्योतिष शास्त्र में आयुर्वेद विज्ञान मौजूदा समय में मानव के रोग निदान के लिए बेहद उपयोगी साबित हो रहा है।
        डा.त्रिपाठी का कहना है कि  ऋग्वेद के 10 वें मंडल में हृदयरोग की चर्चा सबसे पहले प्राप्त होती है। इसमें हृद्रोग मम सूर्य हरिमाण्य च नाषय मंत्र के आधार पर सूर्य को हृदयरोग का प्रमुख कारण निवारण पाया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के विविध ग्रन्थों में कुल 66 ग्रहयोग हैं। इन ग्रहयोगों के अध्यन के उपरांत जातक की जन्तकुंडली के अधार पर रोगों से बचने का भी उपाय ज्ञात हो जाता है।
                 जन्मकुंडली जीवन का आईना
           डा.त्रिपाठी ने बताया कि वास्तव में ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली को जीवन का आईना भी माना गया है। इसका अध्ययन करने पर यदि चतुर्थ भाव में सूर्य, शनि एवं मंगल की स्थिति के अलावा दषमस्थ शनि सूर्य की स्थिति, शत्रुक्षेत्री सूर्य यदि पाप ग्रहों के साथ चतुर्थ भाव में विराजमान रहने से हृदय रोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इस रोग का बचाव के लिए ज्योतिष शास्त्र में ही अचूक उपाय भी बताए गए हैं। इनमें हृदय रोग से बचाव के लिए ललिता सहस्त्रनाम मंत्र, हृदयघात होने पर नृसिंह मंत्र का जाप, हृच्छूल होने पर राहु व आदितहृदयस्त्रोत का पाठ, हृदयरोग की शल्यक्रिया की सफलता हेतु भविष्य पुराणोक्तं आदित्य हृदय का विधि विधान से पाठ, घातक स्थिति में विषिष्ठ मृतसंजीवनी मंत्र व पाषुपतास्त्र का पाठ विशेष फलदायी रहता है। डा.त्रिपाठी ने कहा कि किसी को सामान्य हृदयरोग होने की स्थिति में रविवार को सूर्य की आराधना व माणिक्य पांच रत्ती धारण करने से रोगी को अवष्य लाभ मिलता है।
                हृदय रोग के कारक ग्रह 
 ज्योतिष शास्त्र में हृदयरोग का मुख्य कारक ग्रह शनि, सूर्य, राहु, मंगल तथा गुरू है। जिस ग्रह की दशा अन्तरदशा में रोग के लक्षण दिखते हैं उसके अनुसार पूजा अर्चना से ही लाभ मिलता है। उन्होने कहा कि जन्मकुंडली में नीचस्थ सूर्य एवं दशम भावस्थ मंगल में मधुमेह व उच्च रक्तचाप की संभावना बढ़ जाती है। इन रोगों का भी ग्रहदशा से निदान का उपाय है। जन्मलग्न में 12 वां भावस्थ शुक्र तथा अष्टमावस्था में शनि से कोलेस्ट्राल में विकार उत्पन्न करता है। चैथे भावस्थ शनि, मंगल एवं राहू की युक्ति से रोगी को राहत दिलाई जा सकती है। डा.त्रिपाठी का कहना था कि शनि,गुरू,राहु की सूर्य की दशाओं में यह रोग उत्पन्न होता है तथा कष्टप्रद भी होता है। निरोग जीवन के लिए आयोजित इस संगोष्ठि में मारवाड़ी युवा मंच के पूर्व अध्यक्ष अनिल अग्रवाल, साधुराम अग्रवाल, पार्षद वेदप्रकाश मिश्रा, शक्तिनाथ मिश्रा, विजय शर्मा, जगन्नाथ गुप्ता के अलावा अनेक बुध्दिजीवियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए।


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