जवाफूल धान की खेती |
किसानों का हाईब्रीड धान उत्पादन में रूझान बढ़ा
रमेश शर्मा/पत्थलगांव/
जवाफूल चावंल की महक कभी पत्थलगांव क्षेत्र की पहचान हुआ करती थी, लेकिन किसानों में हाईब्रीड चावल की खेती के प्रति रूझान अधिक होने से अब अचंल के इक्का दुक्का किसान ही जवाफूल धान की उपज ले रहे हैं। सुगंधित जवाफूल चावंल के शौकिनों का कहना है कि भीनी भीनी खूशबू का यह बारिक चावल अब विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है।
यहां पालिडीह, नारायणपुर तथा कापू, कंड्रजा क्षेत्र में जवाफूल चावल की खेती धीरे धीरे सिमटते जा रही है। किसानों का कहना है कि जवाफूल धान की खेती अब मुनाफे का सौदा नहीं रह गया। इस उपज के लिए जितना श्रम और खर्च करना पड़ रहा है, उसके मुकाबले में हाईब्रीड धान बेच कर उन्हे अधिक लाभ मिल रहा है। इसी वजह जवाफूल धान की उपज के प्रति किसानों की रूचि नहीं रह गई है। पाकरगांव के किसान गणेशचन्द्र बेहरा का कहना था कि कुछ दिनों के बाद जवाफूल चावल विलुप्त हो जाएगा।
इस वर्ष तीन गांव के महज चार किसानों ने ही थोड़े से एरिया में जवाफूल धान की उपज ली है। इन किसानों का कहना हे कि आने वाले समय में जवाफूल धान की उपज के लिए उन्होने बीज अवश्य रख लिए हैं पर इस उपज को पारम्परिक तरीक से लेने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। पाकरगांव का किसान गणेश बेहरा का कहना था कि जवाफूल की खेती शुद्ध रूप से रासायनिक उर्वरक एवं दवाइयों से दूर होना चाहिए। उन्होने बताया कि जवाफूल धान के खेतों में वे केवल जैविक खाद का ही प्रयोग करते हैं। उन्होने बताया कि जवाफूल धान की फसल वाले खेतों में उर्वरक मिश्रण पानी नुकसान दायक साबित होता है। इस वजह दूसरे खेतों का बरसाती पानी से फसल को बचाना जरूरी हो जाता है। श्री बेहरा का कहना था कि जवाफूल की उपज लेने वाले किसान इन सावधानियों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं इससे जवाफूल फसल का उत्पादन घटते जा रहा है। सुगंधित धान की उपज लेने वाले किसानों को शासन से प्रोत्साहन नहीं मिलने से इस अचंल में जवाफूल के अलावा दुबराज चावल भी विलुप्त होने लगा है। इस अचंल में कापू के समीप विजयनगर, कन्ड्रजा, परसा गांव में इक्का दुक्का किसान जवाफूल की खेती को आज भी पारम्परिक तरिके से कर रहे हैं। यह मैनपाठ का तराई वाला क्षेत्र होने के कारण किसानों को सुगुधित धान की उपज लेने में अधिक परेशानी नहीं होती है। कंड्रजा गांव के किसान हिम्मत सिंह राठिया ने बताया कि उसके पास जवाफूल चावंल के शौकिन पहले से ही अपनी मांग के साथ भुगतान पहुंचा देते हैं। पर अब नई पीढ़ि जवाफूल की खेती में रूचि नहीं ले रहे हैं। इस वजह जवाफूल की खेती का भविष्य अधंकारमय लगने लगा है। सम्भव नहीं लग रहा है।
सुगंधित जवाफूल चावल के शौकीन छत्तीसगढ़ के बाहर रहने के बाद भी इस चावल का स्वाद से दूर नहीं रह पाते हैं। मुम्बई,दिल्ली अथवा अन्य महानगरों में रहने वाले लोगों की खास पंसद माना जाता है जवाफूल चावंल को। बाहर रहने वाले कई लोग अपने रिश्तेदार तथा मित्रों के माध्यम से सुगंधित जवाफूल चावंल को मंगाना नहीं भूलते हैं। इस अचंल में मुख्य रूप से पत्थलगांव में पालिडीह,पाकरगांव व धरमजयगढ़ विकासखंड में खम्हार और कापू, लैलूंगा विकासखंड में राजपुर तथा पहाड़ लुड़ेग गांव के किसानों व्दारा जवाफूल चावल की अधिक पैदावार ली जाती है। हाईब्रीड धान का उत्पादन बढ़ने के बाद इन क्षेत्र में इक्का दुक्का किसान ही जवाफूल धान की उपज ले रहे हैं। इस चावंल का मांग से उत्पादन कम होने के कारण 50 रूपये प्रति किलो की दर में भी सहजता से नहीं मिल पाता है।
रमेश शर्मा/पत्थलगांव/
जवाफूल चावंल की महक कभी पत्थलगांव क्षेत्र की पहचान हुआ करती थी, लेकिन किसानों में हाईब्रीड चावल की खेती के प्रति रूझान अधिक होने से अब अचंल के इक्का दुक्का किसान ही जवाफूल धान की उपज ले रहे हैं। सुगंधित जवाफूल चावंल के शौकिनों का कहना है कि भीनी भीनी खूशबू का यह बारिक चावल अब विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है।
यहां पालिडीह, नारायणपुर तथा कापू, कंड्रजा क्षेत्र में जवाफूल चावल की खेती धीरे धीरे सिमटते जा रही है। किसानों का कहना है कि जवाफूल धान की खेती अब मुनाफे का सौदा नहीं रह गया। इस उपज के लिए जितना श्रम और खर्च करना पड़ रहा है, उसके मुकाबले में हाईब्रीड धान बेच कर उन्हे अधिक लाभ मिल रहा है। इसी वजह जवाफूल धान की उपज के प्रति किसानों की रूचि नहीं रह गई है। पाकरगांव के किसान गणेशचन्द्र बेहरा का कहना था कि कुछ दिनों के बाद जवाफूल चावल विलुप्त हो जाएगा।
इस वर्ष तीन गांव के महज चार किसानों ने ही थोड़े से एरिया में जवाफूल धान की उपज ली है। इन किसानों का कहना हे कि आने वाले समय में जवाफूल धान की उपज के लिए उन्होने बीज अवश्य रख लिए हैं पर इस उपज को पारम्परिक तरीक से लेने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। पाकरगांव का किसान गणेश बेहरा का कहना था कि जवाफूल की खेती शुद्ध रूप से रासायनिक उर्वरक एवं दवाइयों से दूर होना चाहिए। उन्होने बताया कि जवाफूल धान के खेतों में वे केवल जैविक खाद का ही प्रयोग करते हैं। उन्होने बताया कि जवाफूल धान की फसल वाले खेतों में उर्वरक मिश्रण पानी नुकसान दायक साबित होता है। इस वजह दूसरे खेतों का बरसाती पानी से फसल को बचाना जरूरी हो जाता है। श्री बेहरा का कहना था कि जवाफूल की उपज लेने वाले किसान इन सावधानियों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं इससे जवाफूल फसल का उत्पादन घटते जा रहा है। सुगंधित धान की उपज लेने वाले किसानों को शासन से प्रोत्साहन नहीं मिलने से इस अचंल में जवाफूल के अलावा दुबराज चावल भी विलुप्त होने लगा है। इस अचंल में कापू के समीप विजयनगर, कन्ड्रजा, परसा गांव में इक्का दुक्का किसान जवाफूल की खेती को आज भी पारम्परिक तरिके से कर रहे हैं। यह मैनपाठ का तराई वाला क्षेत्र होने के कारण किसानों को सुगुधित धान की उपज लेने में अधिक परेशानी नहीं होती है। कंड्रजा गांव के किसान हिम्मत सिंह राठिया ने बताया कि उसके पास जवाफूल चावंल के शौकिन पहले से ही अपनी मांग के साथ भुगतान पहुंचा देते हैं। पर अब नई पीढ़ि जवाफूल की खेती में रूचि नहीं ले रहे हैं। इस वजह जवाफूल की खेती का भविष्य अधंकारमय लगने लगा है। सम्भव नहीं लग रहा है।
सुगंधित जवाफूल चावल के शौकीन छत्तीसगढ़ के बाहर रहने के बाद भी इस चावल का स्वाद से दूर नहीं रह पाते हैं। मुम्बई,दिल्ली अथवा अन्य महानगरों में रहने वाले लोगों की खास पंसद माना जाता है जवाफूल चावंल को। बाहर रहने वाले कई लोग अपने रिश्तेदार तथा मित्रों के माध्यम से सुगंधित जवाफूल चावंल को मंगाना नहीं भूलते हैं। इस अचंल में मुख्य रूप से पत्थलगांव में पालिडीह,पाकरगांव व धरमजयगढ़ विकासखंड में खम्हार और कापू, लैलूंगा विकासखंड में राजपुर तथा पहाड़ लुड़ेग गांव के किसानों व्दारा जवाफूल चावल की अधिक पैदावार ली जाती है। हाईब्रीड धान का उत्पादन बढ़ने के बाद इन क्षेत्र में इक्का दुक्का किसान ही जवाफूल धान की उपज ले रहे हैं। इस चावंल का मांग से उत्पादन कम होने के कारण 50 रूपये प्रति किलो की दर में भी सहजता से नहीं मिल पाता है।
1 टिप्पणी:
डियर सर, जवाफूल चावल के बारे में आपका लेख पढने को मिला , क्या आप हमें पत्थलगांव के एक दो विक्रेता का पता बता सकते हैं ,जिनसे हमें सही भाव पर जवाफूल चावल मिल सके ,
पुरुषोत्तम अग्रवाल ,जांजगीर mo. 9425230445
एक टिप्पणी भेजें