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गुरुवार, 1 जनवरी 2015

सात समंदर पार से आई खुशी

जर्मनी की बाला का छत्तीसगढ़ प्रेम
सेवा के कार्य में भाषा नहीं बनती रूकावट
    रमेश शर्मा /पत्थलगांव/
         
         ममतामयी मदर टेरेसा के दिखाए मार्ग पर चल कर समाज सेवा करने के लिए सात समन्दर पार रहने वाली एक विदेशी बाला ने देश के सैकड़ों शहरों में पत्थलगांव को चुना है। जर्मनी की इस बाला ने यहां की समाज सेवी संस्था राहा व्दारा संचालित विकलांग सेवा केन्द्र में रहने वाले असहाय बच्चों को अपनी सेवा देकर उन्हे आत्म निर्भर बनाने का निर्णय लिया था। सेवा के इस काम में उसे खुशियों का खजाना मिल गया है। इस विदेशी बाला ने पूरी लगन और ईमानदारी से सेवा के दायित्व का निर्वहन किया, जिससे लारा नामक विदेशी युवती अब यहां रहने वाले विकलांग बच्चों के साथ उनके परिजनों की भी चहेती बन गई है।  
       रायगढ़ अम्बिकापुर हेल्थ एसोसिएशन नामक समाज सेवी संस्था की निदेषक सिस्टर एलिजाबेथ ने बताया कि जर्मनी में स्कूली षिक्षा पूरी करने के बाद कम से कम दो वर्ष तक समाज सेवा के क्षेत्र में काम करने की अनिवार्यता है। इसी के चलते जर्मनी के स्काच शहर की निवासी सुश्री लारा बुसेमर ने दो साल पहले छत्तीसगढ़ के पत्थलगांव शहर में आकर समाज सेवा का मन बनाया था। लारा को यहां विकलांग बच्चों के साथ रह कर उन्हे पढ़ाने लिखाने का माहौल इतना रास आया कि उसकी निर्धारित समयावधि देखते ही देखते पूरी हो गई। बाद में लारा ने यहां के ग्रामीण विकलांग बच्चों का प्यार और आत्मीयता को देख कर उनके बीच में लगभग दो माह और व्यतित कर लिए हैं। यहां लारा ने अपने समाज सेवा के काम से सभी को आष्चर्य चकित कर डाला है।
                                                   याद खींच लाई दुबारा
         शहर का विकलांग सेवा केन्द्र में रहने वाले विकलांग बच्चे तथा यहां पदस्थ अन्य स्टॅाफ से मिला प्यार दुलार की यादें लारा को यहां फिर से खींच लाई है। इस बार लारा अकेली नहीं बल्कि अपनी माता श्रीमती जेली व पिता पीटर बुसमेर को भी साथ लेकर आई है। विकलांग सेवा केन्द्र में रह कर विद्या अध्ययन करने वाले बच्चे भी फिर से लारा को अपने बीच में देख कर काफी खुश हैं। लारा का कहना था कि दूसरी बार पत्थलगांव पहुंच कर उसे बेहद प्रसन्नता हो रही है, क्योकि यहां पोलियो और अन्य बीमारियों से पीड़ित इन बच्चों ने अब अपने पैरों पर खड़ा होना सीख लिया है। ये बच्चे पढ़ लिख कर जब आत्म निर्भर बन जाएंगे, उस दिन का उसे बेसब्री से इंतजार है। 21 साल की सुरी लारा का कहना था कि उसकी जिन्दगी में यहां व्यतित किया गया समय एक यादगार समय बन कर रह गया है। यहां छोटे बच्चों की भाषा नहीं समझने के बाद भी उनके व्दारा इशारों में अपनी बात को समझाने का ढंग तथा बेहद भोलेपन के साथ किया जाने वाला हंसी मजाक के क्षण को वह कभी भी नहीं भूल पाती है।
                                                 मदर टेरेसा है प्रेरणा
    लारा ने बताया कि उसे ममतामयी मदर टेरेसा के बारे में पढ़ने के बाद ही भारत में आकर समाज सेवा के कार्य करने की इच्छा हुई। तदर की प्रेरणा से उसने स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद भारत के किसी गांव में आकर समाज सेवा करने का निश्चय किया था। स्कूल के एक सहपाठी ने इंटरनेट पर छत्तीसगढ़ के पत्थलगांव शहर में विकलांग बच्चों के लिए काम करने वाला इस सेवा केन्द्र का नाम सुझाया था। लारा ने बताया कि पत्थलगांव के बारे में जितना सुना था, यहां पहुंच कर उससे भी ज्यादा अच्छा वातावरण देखने को मिला । इस विदेशी बाला का कहना था कि भविष्य में भी उसकी समाज सेवा के कार्यो से जुड़े रहने की तमन्ना है। लारा ने कहा कि मदर टेरेसा के दिखाए मार्ग पर चल कर वह भी अपने पराए का भेद भुला कर सेवा के सहयोग में अपना हाथ बांटना चाहती है।